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30 Nov 2016 · 1 min read

लोग प्यार को कहते , क्यों ये इक बिमारी है

लोग प्यार को कहते ,क्यों ये इक बिमारी है
जब की इसकी खुशबू से,हर जगह खुमारी है

इस जहान में कोई दानवीर हो कितना
द्वार पर मगर रब के तो दिखे भिखारी है

खेल रब खिलाता है वक़्त के इशारों पर
हम जमूरे हैं उसके और वो मदारी है

दूर सब से हो जाते छोड़ कर सभी दुनिया
जानते नहीं आती कौन सी सवारी है

है उड़ान भरना आसान कब यहाँ देखो
मिलता अपनों में ही कोई छिपा शिकारी है

प्यार से सजाई है ज़िन्दगी तेरी बगिया
फूल शूल दोनों ने मिल के ये सँवारी है

दाँव खेलती रहती रोज ‘अर्चना’ ये तो
क्या करें यहाँ अपनी ज़िन्दगी जुआरी है
डॉ अर्चना गुप्ता

1 Comment · 344 Views
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