Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Apr 2017 · 6 min read

रमेशराज के समसामयिक गीत

।। आज हमारे चाकू यारो ।।
—————————————-

बिना ध्येय के रक्तपात को आतुर बन बैठे,
आज हमारे चाकू यारो हम पर तन बैठे ।

हमने छुरियों को समझाया उनका कत्ल करें
कविताओं में अपराधी-से जो विचार विचरें
पर छुरियों के फलक सत्य के खूं में सन बैठे
आज हमारे चाकू यारो हम पर तन बैठे।

आग बनाकर हमने भेजा चूल्हों तक जिनको
वे कर आये राख अनगिनत बहुओं के तन को
खुशियों के संदर्भ असीमित पीड़ा जन बैठे,
आज हमारे चाकू यारो हम पर तन बैठे।

जिनके अधरों पर थीं बातें केवल सतयुग की
‘राजा शिव’ जैसे लोगों की आज परीक्षा ली
जिबह कपोतों की ही वह तो कर गर्दन बैठे,
आज हमारे चाकू यारो हम पर तन बैठे।
—————————
-रमेशराज

।। मैं विचार हूं ।।
————————-

इसी तरह हम देखें कब तक बैर निभाओगे
मैं विचार हूं मुझे कभी तुम मार न पाओगे।

मैं शब्दों में नयी व्यंजना लेकर उभरूंगा
प्यार और क्रान्ति का सपना लेकर उभरूंगा
मैं हूं सुलगी आग कहाँ तक इसे बुझाओगे,
मैं विचार हूं मुझे कभी तुम मार न पाओगे।

मैं संकेत दे रहा खुशबूदार दिशाओं के
मेरे मन के हिस्से-किस्से अग्नि-कथाओं के
मुझको करने क़त्ल सुनो तुम जब भी आओगे
मैं विचार हूं मुझे कभी तुम मार न पाओगे।

मैं रस-छंदों में ध्वनियों में बसी ऊर्जा हूं
रति हूं कहीं, कहीं पर करुणा, कही रौद्रता हूं
मैं स्थायी भाव कहां तक मुझे मिटाओगे
मैं विचार हूं मुझे कभी तुम मार न पाओगे।
———————–
-रमेशराज

।। उनसे क्या उम्मीद रखें ।।
——————————————

जिनके आचराणों के किस्से केंची जैसे हों,
कैसे उनको गाँव कहें जो दिल्ली जैसे हों।

नहीं सुरक्षा हो पायेगी गन्ध-भरे वन की
काटी जायेगी डाली-टहनी तक चन्दन की,
लोगों के व्यक्तित्व जहां पर केंची जैसे हों।

जब हम सो जाएंगे मीठे सपने देखेंगे
वे घर के तालों के लीवर-हुड़के ऐंठेंगे,
क्या उनसे उम्मीद रखें जो चाभी जैसे हों।

तय है वातावरण शोक-करुणा तक जायेगा
कौन हंसेगा और ठहाके कौन लगायेगा?
परिचय के संदर्भ जहां पर अर्थी जैसे हों।

वहां आदमीयत को पूजा कभी न जायेगा
कदम-कदम पर सच स्वारथ से मातें खायेगा,
जहां रूप-आकार मनुज के कुर्सी जैसे हों।
——————–
-रमेशराज

।। जोकर सर्कस के।।
——————————

चार शब्द क्या सीख गये तुम हमसे साहस के,
हमको ही अनुभाव दिखाने लगे वीर-रस के।

हमने तुम्हें बनाना चाहा सभ्य और ज्ञानी
किन्तु बन गये तुम तो दम्भी, कोरे अभिमानी !
तुम न हुए पण्डित भाषा के शहरों में बस के।

हमने जब भी ललकारा, पापी को ललकारा
किन्तु क्रोध में तुमने सीधे-सच्चों को मारा,
हमने जीवन दिया जिन्हें, तुम आये डस-डस के ।

आदर्शों की-सच की छुरियां-बन्दूकें थामे
करें भीड़ के सम्मुख चाहे जैसे हंगामे,
लेकिन रहते हैं जोकर ही जोकर सर्कस के।

हमने रस्सी और बाल्टी-सा श्रम जीया है
हमको जब भी प्यास लगी मीठा जल पीया है
तुम तो आदी रहे सदा बोतल के-थर्मस के।

खुद को चाहे तुम अर्जुन मनवाओ या मानो
सदा लक्ष्य बींधे हमने इतना तो पहचानो
हम ही तीर रहे हैं बन्धु तुम्हारे तरकश के।
———————————
-रमेशराज

।। जल की तरह बहे।।
———————————

हम जीवन-भर भूखे-प्यासे खाली पेट रहे
कुछ बौनी नजरों ने लेकिन शोषक-सेठ कहे।

खुद को यदि बेचा तो बेचा कविता की खातिर
गर जमीर गिरवीं रक्खा भी, जनता की खातिर,
सच के लिये हमेशा हमने अति दुःख-दर्द सहे
कुछ बौनी नजरों ने लेकिन शोषक-सेठ कहे।

हम नदियों की तरह किसी सागर में नहीं मिले
अपने किस्से बाढ़ सरीखे डर में नहीं मिले,
हम खेतों के बीच कुंए के जल की तरह बहे,
कुछ बौनी नजरों ने लेकिन शोषक-सेठ कहे।
—————
-रमेशराज

।। यह कैसा रति-बोध।।
————————————–

सारे दर्शक पड़े हुए है अब हैरानी में
वे ले आये हैं राधा को राम-कहानी में।

यह कैसा रति-बोध अचम्भा सबको है भारी!
रामायण के नायक ने वैदेही दुत्कारी,
रही अश्रु की कथा शेष सीता की बानी में।

मच-मंच नैतिकता को आहत देखें कब तक
सिर्फ वर्जनाओं के प्रति चाहत देखें कब तक
कितने और डूबते जायें बन्धु गिलानी में।

सच के खत पढ़ते-गढ़ते अब लोग न हंसिकाएं
नयन-नयन मैं डर के मंजर, छल की कविताएं
आज सुहानी ओजस बानी गलतबयानी में।
———————
-रमेशराज

।। मुस्कान लगी प्यारी।।
————————————–

बुरे दिनों में भी तेरी पहचान लगी प्यारी
फटी हुई धोती जैसी मुस्कान लगी प्यारी।

संघर्षों के दौरां तुझको देखा मुस्काते
साहस-भरी कथाएं हरदम अधरों पर लाते।
हंसने की आदत दुःख के दौरान लगी प्यारी,
फटी हुई धोती जैसी मुस्कान लगी प्यारी।

विस्मृत करते हुए सिनेमा कंगन काजर को
तुम ने श्रम से रोज संवारा फूट रहे घर को।
सम्बन्धों के इस सितार की तान लगी प्यारी,
फटी हुई धोती जैसा मुस्कान लगी प्यारी।।

उधड़े हुए ब्लाउजों जैसी बातों में हम-तुम
कई समस्याओं में खोये रातों में हम-तुम
साथ-साथ जीने की हमको आन लगी प्यारी,
फटी हुई धोती जैसी मुस्कान लगी प्यारी।
———————-
-रमेशराज

।। सिर्फ रोटियां याद रहीं।।
——————————————–

मुस्कानों से भरा हुआ अभिवादन भूल गये
सिर्फ रोटियां याद रहीं हम चुम्बन भूल गये।

दायित्वों से लदा हुआ घर ऐसी गाड़ी है,
जिसमें पहियों जैसी अपनी हिस्सेदारी है
संघर्षों में रति का हर सम्वेदन भूल गये
सिर्फ रोटियां याद रहीं हम चुम्बन भूल गये।

याद हमें अब तो आटा तरकारी का लाना,
बिजली के बिल भरना तड़के दफ्तर को जाना।
कैसे आया और गया कब सावन भूल गये
सिर्फ रोटियां याद रहीं हम चुम्बन भूल गये।
———————
-रमेशराज

।। ‘प्रेम’ शब्द का अर्थ।।
————————————

कभी सियासत कभी हुकूमत और कभी व्यापार हुआ
तुमसे मिलकर ‘प्रेम’ शब्द का अर्थ रोज तलवार हुआ।

कभी आस्था कभी भावना कभी जिन्दगी कत्ल हुई
जहां विशेषण सूरज-से थे वहां रोशनी कत्ल हुई
यही हदिसा-यही हादिसा जाने कितनी बार हुआ।
तुमसे मिलकर ‘प्रेम’ शब्द का अर्थ रोज तलवार हुआ।

होते हुए असहमत पल-पल नित सहमति के दंशों की
अब भी यादें ताजा हैं इस मन पर रति के दंशों की
नागिन जैसी संज्ञाओं से अनचाहा अभिसार हुआ
तुम से मिलकर ‘प्रेम’ शब्द का अर्थ रोज तलवार हुआ।
——————
-रमेशराज

।। आज जुबां पर ताले हैं।।
——————————————–

चाहे जब छलनी कर देंगे भालों की क्या है
सच को बौना साबित करने वालों की क्या है।

रोज किसी की लाचारी पै हंसते रहने की,
मकड़ों ने कोशिश की हमको मुर्दा कहने की,
खण्डहर हमें बोलने वाले जालों की क्या है
सच को बौना साबित करने वालों की क्या है?

आज समय ने समझौतों में रहना सिखलाया,
माना पांवों को जकड़ा अब सांकल में पाया,
नहीं हमें परवाह, समय की चालों की क्या है?

मरा नहीं इतना पौरुष जब चाहें झुक जायें
आदर्शों के पथ पर चलते-चलते रुक जायें
आज जुबां पर ताले हैं, पर तालों की क्या है?
———————–
-रमेशराज

।। भाई-भाई को लड़वाया।।
———————————-

तू हिन्दू-हिन्दू चिल्लाया, वो मुस्लिम बनकर गुर्राया
मूरख हो जो तुम दोनों को असल भेड़िया नजर न आया।
डंकल प्रस्तावों के संग में अमरीका घर में घुस आया।।

तू कवि था पहचान कराता उस असली दुश्मन तक जाता
जो हाथों से छीने रोटी जनता की जो नोचे बोटी
लेकिन इन बातों के बदले मस्जिद-मंदिर में उलझाया।
अमरीका का घर में घुस आया।।

आदमखोरों के दल पै तू चर्चा करता हर खल पै तू
पहले बस इतना कर लेता सच के अंगारे भर लेता
लेकिन तूने बनकर शायर बस मजहब का जाल बिछाया।
अमरीका का घर में घुस आया।।

तुझको लड़ना था तो लड़ता भूख गरीबी कंगाली से
लेकिन तूने रखा न नाता कभी मुल्क की बदहाली से
तूने मंच-मंच पे आकर अपना फूहड़ हास भुनाया।
अमरीका का घर में घुस आया।।

मां को डायन कहने वाला माना तूने रोज उछाला
उसके भी बारे में कहता जो दाऊदों के संग रहता
बनी स्वदेशी जिसकी बानी मगर विदेशी रोज बुलाया।
अमरीका का घर में घुस आया।।

कण-कण में प्रभु की सत्ता है उसका हर कोना चप्पा है
राम-मुहम्मद तो सबके हैं तूने इनको भी बांटा है।
अमरीका से नहीं लड़ा तू हिन्दू-मुस्लिम को लड़वाया।
अमरीका का घर में घुस आया।।
———————-
-रमेशराज

।। सबको देखा बारी-बारी।।
—————————————

चौपट हुए स्वदेशी धंधे सब के गले विदेशी फंदे,
आज राह दिखलाते हमको पश्चिम के खलनायक गंदे।
फूहड़ता का आज मुल्क में जगह-जगह कोलाहल भारी,
सबको देखा बारी-बारी, देख सभी को जनता हारी ||

कदाचार बारहमासी है सरसों में सत्यानाशी है,
बने डाप्सी की आशंका अब घर-घर अच्छी-खासी है।
पामोलिन की इस साजिश पर मौन रहे सरकार हमारी
सबको देखा बारी-बारी, देख सभी को जनता हारी ||

खौफनाक चिन्तन घेंघे का लेकर आया साल्ट विदेशी
रोती आज नमक की डेली आयोडीन ले रही पेशी।
मल्टीनेशन कम्पनियों ने खेती चरी नमक की सारी
सबको देखा बारी-बारी , देख सभी को जनता हारी ।।

चारों ओर दिखाते गिरगिट महंगाई का ऐसा क्रिकिट
डीजल के छक्के पर छक्के पैटरोल के चौके, पक्के।
शतक करे पूरा कैरोसिन और रसोई गैस हमारी,
सबको देखा बारी-बारी, देख सभी को जनता हारी ||

संसद भीतर सभी सांसद अंग्रेजी में ईलू बोलें,
भारत इनको लगे इण्डिया बन अंग्रेज कूदते डोलें।
अंग्रेजी डायन को लाकर सबने भारत मां दुत्कारी
सब को देखा बारी-बारी, देख सभी को जनता हारी ||
———————-
-रमेशराज
————————————————————
Rameshraj, 15/109, isanagar, near-thana sasni gate, aligarh

Language: Hindi
Tag: गीत
312 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
हाथ पताका, अंबर छू लूँ।
हाथ पताका, अंबर छू लूँ।
संजय कुमार संजू
भूख
भूख
नाथ सोनांचली
यदि आपका स्वास्थ्य
यदि आपका स्वास्थ्य
Paras Nath Jha
"चार दिना की चांदनी
*Author प्रणय प्रभात*
इश्क़ और इंकलाब
इश्क़ और इंकलाब
Shekhar Chandra Mitra
निगाहें मिलाके सितम ढाने वाले ।
निगाहें मिलाके सितम ढाने वाले ।
Phool gufran
शयनकक्ष श्री हरि चले, कौन सँभाले भार ?।
शयनकक्ष श्री हरि चले, कौन सँभाले भार ?।
डॉ.सीमा अग्रवाल
भाव - श्रृँखला
भाव - श्रृँखला
Shyam Sundar Subramanian
मैं तो हमेशा बस मुस्कुरा के चलता हूॅ॑
मैं तो हमेशा बस मुस्कुरा के चलता हूॅ॑
VINOD CHAUHAN
रमेशराज के शृंगाररस के दोहे
रमेशराज के शृंगाररस के दोहे
कवि रमेशराज
कोरोना चालीसा
कोरोना चालीसा
नंदलाल सिंह 'कांतिपति'
इंसान
इंसान
Vandna thakur
खोट
खोट
GOVIND UIKEY
किस लिए पास चले आए अदा किसकी थी
किस लिए पास चले आए अदा किसकी थी
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
आमंत्रण और निमंत्रण में क्या अन्तर होता है
आमंत्रण और निमंत्रण में क्या अन्तर होता है
शेखर सिंह
शांतिवार्ता
शांतिवार्ता
Prakash Chandra
#Dr Arun Kumar shastri
#Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
अनुभूत सत्य .....
अनुभूत सत्य .....
विमला महरिया मौज
When you learn to view life
When you learn to view life
पूर्वार्थ
विनम्रता
विनम्रता
Bodhisatva kastooriya
सबको सिर्फ़ चमकना है अंधेरा किसी को नहीं चाहिए।
सबको सिर्फ़ चमकना है अंधेरा किसी को नहीं चाहिए।
Harsh Nagar
फंस गया हूं तेरी जुल्फों के चक्रव्यूह मैं
फंस गया हूं तेरी जुल्फों के चक्रव्यूह मैं
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
तोहमतें,रूसवाईयाँ तंज़ और तन्हाईयाँ
तोहमतें,रूसवाईयाँ तंज़ और तन्हाईयाँ
Shweta Soni
लैला अब नही थामती किसी वेरोजगार का हाथ
लैला अब नही थामती किसी वेरोजगार का हाथ
yuvraj gautam
झूठ
झूठ
Dr. Pradeep Kumar Sharma
जीवन ज्योति
जीवन ज्योति
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
जिंदगी में ऐसा इंसान का होना बहुत ज़रूरी है,
जिंदगी में ऐसा इंसान का होना बहुत ज़रूरी है,
Mukesh Jeevanand
💐अज्ञात के प्रति-120💐
💐अज्ञात के प्रति-120💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
2539.पूर्णिका
2539.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
सारी व्यंजन-पिटारी धरी रह गई (हिंदी गजल/गीतिका)
सारी व्यंजन-पिटारी धरी रह गई (हिंदी गजल/गीतिका)
Ravi Prakash
Loading...