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1 Aug 2020 · 6 min read

ये समय है घायल पर्यावरण को सँवारने का

ये समय है घायल पर्यावरण को सँवारने का
——————————प्रियंका सौरभ

लॉकडाउन के माध्यम से संघर्ष करने के बाद, नई चिंताओं और तनाव की बाढ़ के साथ, अंत में आराम करने का समय आ गया है। यह निश्चित है कि, सामान्य स्थिति ’का एक संकेत हमारी घायल पृथ्वी पर लौटने और पर्यावरण को सँवारने का है तो, इस बार विश्व पर्यावरण दिवस मनाने के लिए, हमें एक साथ आना चाहिए और इस ग्रह की बेहतरी की दिशा में काम करना चाहिए।

इस वर्ष के विश्व पर्यावरण दिवस का विषय ‘प्रकृति के लिए समय’ है। जीवन का जश्न मनाने के लिए, विभिन्न प्रजातियों, अनिवार्यताओं पृथ्वी हमें नि: शुल्क आपूर्ति करती है, और इस ग्रह को अच्छी तरह से जानने के लिए, एक बार फिर, हमें अनुसंधान और नवाचारों के माध्यम से अर्जित अनंत ज्ञान में गोता लगाना चाहिए। और एक बार फिर, हमें टीम को सुलझाना चाहिए, हल करना चाहिए, और उस पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए कार्य करना चाहिए जो हमें निराश करता है।

कोरोना वायरस आज के समय में एक तरह का संकेत है, जो प्रकृति की खूबसूरती की ओर हमें ले जाता है. ये हमें इस बात का संकेत देता है कि अगर इसी तरह से स्वच्छ व सुरक्षित जलवायु हमें चाहिए तो भविष्य में अपने स्तर पर ही हमें और भी बड़े लॉकडाउन के लिए अभ्यास करना होगा, पर बिना कोविड-19 जैसे वायरस के. यह इस बात का भी संकेत देता है कि अगर हम पर्यावरण के अधिकारों का सम्मान नहीं करते हैं, तो कोविड-19 जैसे महामारियों का दंश झेलने के लिए हमें आगे भी तैयार रहना होगा.

जीवाश्म ईंधन उद्योग – फोसिल फ्यूज इंडस्ट्री – से ग्लोबल कार्बन उत्सर्जन इस साल रिकॉर्ड 5 प्रतिशत की कमी के साथ 2.5 बिलियन टन घट सकता है. कोरोना वायरस महामारी के चरम पर होने के कारण इस जीवाश्म ईंधन की मांग में सबसे बड़ी गिरावट आई है. यही नहीं, महामारी की वजह से यात्रा, कार्य और उद्योगों पर अभूतपूर्व प्रतिबंधों ने हमारे घुटे हुए शहरों में भी अच्छी क्वालिटी की हवा के साथ अच्छे दिनों को सुनिश्चित कर दिया है. इस क्रम में पॉल्यूशन और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन स्तर सभी महाद्वीपों में गिर गया है.

कोरोना वायरस महामारी आर्थिक गतिविधियों में वैश्विक कमी का कारण बनी है, हालांकि यह चिंता का प्रमुख कारण है, पर ह्यूमन एक्टिविटीज के कम होने का पर्यावरण पर पॉजिटिव असर जरूर पड़ता है. अब देखिए न, इन दिनों औद्योगिक और परिवहन उत्सर्जन व अपशिष्ट निर्माण की तादाद कम हो गई है और औसत दर्जे का डेटा वायुमंडल, मिट्टी और पानी में प्रदूषकों के समाशोधन का कार्य कर रहा है. यह प्रभाव कार्बन उत्सर्जन के विपरीत भी है, जो एक दशक पहले वैश्विक वित्तीय दुर्घटना के बाद 5 प्रतिशत तक बढ़ गया था.

मई का महीना, जो आमतौर पर पत्तियों के अपघटन के कारण शिखर कार्बन उत्सर्जन को रिकॉर्ड करता है, में दर्ज किया गया है कि 2008 के वित्तीय संकट के बाद हवा में प्रदूषकों का न्यूनतम स्तर क्या हो सकता है. सिर्फ भारत ने ही नहीं, बल्कि चीन और उत्तरी इटली ने भी अपने देश में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के लेवल में महत्वपूर्ण कमी दर्ज की है. लॉकडाउन के परिणामस्वरूप, मार्च और अप्रैल में दुनिया के प्रमुख शहरों में एयर क्वालिटी इंडेक्स में जबरदस्त सुधार हुआ है. कार्बन डाइऑक्साइड (ष्टह्र2), नाइट्रोजन ऑक्साइड (हृह्र&) और संबंधित ओजोन (ह्र3) के गठन व पार्टिकुलेट मैटर (क्करू) में फैक्ट्री और सड़क यातायात उत्सर्जन में भी कमी के कारण हवा की क्वालिटी में बड़े पैमाने पर सुधार हुआ है. साथ ही साथ जल निकाय भी साफ हो रहे हैं और यमुना व गंगा जैसी नदियों ने देशव्यापी तालाबंदी के लागू होने के बाद से बेहद अहम सुधार दिखे हैं.

इस स्थिति में जब सभी राष्ट्र कोरोना वायरस के साए में लगभग बंद हंै, तो पर्यावरण, परिवहन और उद्योग के नियमों का बेहतर कार्यान्वयन पर्यावरण पर ह्यूमन एक्टिविटीज के हार्मफुल इफैक्ट्स को कम करने में उपयोगी सिद्ध हुआ है, हालांकि इस तरह के विकास ने ग्लोबल प्रोडक्शन, उपभोग और रोजगारों के स्तर में भारी आर्थिक और सामाजिक झटके दिए हैं, लेकिन वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में महत्वपूर्ण कमी जैसे मुद्दे भी इसी से जुड़े हुए हैं, इसलिए जब तक कोरोनो वायरस संकट आर्थिक गतिविधियों को कम करता रहेगा, कार्बन उत्सर्जन अपेक्षाकृत कम ही रहेगा. देखा जाए तो यह बड़ा और टिकाऊ पर्यावरणीय सुधार है.
ग्लोबल लेवल पर वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से होने वाली मौतें हर साल 7 मिलियन मौतों के साथ महामारी के अनुपात में लगभग बराबर ही होती हैं.

इस समस्या को दूर करने के लिए भारत में भी एक जागृत आह्वान होना चाहिए. हां हालांकि, वायु प्रदूषण को कम करने के लिए लॉकडाउन का तरीका कोई आदर्श तरीका नहीं है, लेकिन प्रेजेंट कंडीशन में यह साबित करता है कि वायु प्रदूषण मानव निर्मित ही है और अब हमें यह भी पता चल गया है कि प्रदूषण को कम हम ही लोग कर सकते हैं. वर्तमान कोरोना वायरस संकट भारत को एक स्वच्छ ऊर्जा के भविष्य में निवेश करने के अवसर दे रहा है, इस अवसर को हमें भुनाना ही होगा. अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक – जिनमें ब्लैक कार्बन, मीथेन, हाइड्रोफ्लोरोकार्बन और ट्रोपोस्फेरिक ओजोन शामिल हैं – ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देने वाले ये तम्व शक्तिशाली जलवायु कैंसर की तरह हैं. ये दुनियाभर में बड़ी आबादी के लिए भोजन, पानी और आर्थिक सुरक्षा को भी महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं, अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों के प्रभाव एक प्रमुख विकास के मुद्दे का प्रतिनिधित्व करते हैं जो त्वरित और महत्वपूर्ण वैश्विक कार्रवाई चाहते हैं, अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक उत्सर्जन को कम करने के उपाय अक्सर सुलभ और लागत प्रभावी होते हैं, और अगर जल्द लागू किए गए तो जलवायु के साथ-साथ लाखों लोगों के स्वास्थ्य और आजीविका के लिए तत्काल लाभदायक साबित हो सकते हैं.

जलवायु परिवर्तन पर विज्ञान के माध्यम से हम जनता के लिए खतरे को भांपने में विफल रहे हैं, जिससे तथ्यों का व्यापक खंडन हुआ है. आवास और जैव विविधता का नुकसान मानव समुदायों में फैलने वाले घातक वायरस और कोविड-19 जैसी बीमारियों के लिए स्थितियां बनाता है और अगर हम अपनी भूमि को नष्ट करना जारी रखते हैं, तो हम अपने पास मौजूद आवश्यक संसाधनों को भी नष्ट कर देंगे और इससे हमारी कृषि प्रणालियों को भी गहरा धक्का लगेगा.
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जलवायु परिवर्तन को लेकर उठाए जाने वाले सख्त कदम भोजन और पानी की कमी, प्राकृतिक आपदाओं और समुद्र के स्तर में वृद्धि को कम कर सकती है, जिससे अनगिनत व्यक्तियों और समुदायों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सकता है. दुनिया भर में, स्वस्थ लोग अपनी कम्युनिटी में अधिक संवेदनशील लोगों की रक्षा के लिए अपनी लाइफ स्टाइल को बदल रहे हैं. जलवायु परिवर्तन के लिए इसी तरह का समर्पण हमारी ऊर्जा खपत को काफी हद तक बदल सकता है.

सामान्य रूप से – जीवाश्म ईंधन को खोदना, जंगलों को काटना और लाभ, सुविधा व खपत के लिए हेल्थ को इग्नोर करना – विनाशकारी जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा दे रहा है. अब समय आ गया है जब प्रेजेंट कंडीशंस को देखते हुए अपनी धरती की सुरक्षा के लिए अहतियातन कदम उठाए जाएं.इस नजरिए से देखें तो कोरोना वायरस एक लक्षण है, एक संकेत है, जो प्रकृति की खूबसूरती की ओर हमें ले जाता है. ये हमें इस बात का संकेत देता है कि अगर इसी तरह से स्वच्छ व सुरक्षित जलवायु हमें चाहिए तो भविष्य में अपने स्तर पर ही और भी बड़े लॉकडाउन के लिए अभ्यास करना होगा, पर बिना कोविड-19 जैसे वायरस के. यह इस बात का संकेत देता है कि अगर हम पर्यावरण के अधिकारों का सम्मान नहीं करते हैं, तो कोविड-19 जैसे महामारियों का दंश झेलने के लिए हमें आगे भी तैयार रहना होगा.

अब समय आ गया है, हमें धरती मां की पुकार सुननी होगी. अपनी धरती को अगर हमने मां का दर्जा दिया है तो उसके साथ मां जैसी भावना से पेश भी आना होगा.वरना आधुनिक युग के महानतम वैज्ञानिक और ब्रह्मांड के कई रहस्यों को सुलझाने वाले खगोल विशेषज्ञ स्टीफन हॉकिंग की भविष्यवाणी का दर्द हमें झेलना होगा. उनका मानना था कि पृथ्वी पर हम मनुष्यों के दिन अब पूरे हो चले हैं. हम यहां दस लाख साल बिता चुके हैं. पृथ्वी की उम्र अब महज दो सौ से पांच सौ साल ही बची है. इसके बाद या तो कहीं से कोई धूमकेतु आकर इससे टकराएगा या सूरज का ताप इसे निगल जाने वाला है या कोई महामारी आएगी और यह धरती खाली हो जाएगी.

हॉकिंग के अनुसार मनुष्य को अगर एक या दस लाख साल और बचना है, तो उसे पृथ्वी को छोड़कर किसी दूसरे ग्रह पर शरण लेनी होगी. अब यह ग्रह कौन सा होगा, इसकी तलाश अभी बाकी है. इस तलाश की रफ्तार फिलहाल बहुत धीमी है. पृथ्वी का मौसम, तापमान और यहां जीवन की परिस्थितियां जिस तेज रफ्तार से बदल रही हैं, उन्हें देखते हुए उनकी इस भविष्यवाणी पर भरोसा न करने की कोई वजह नहीं दिखती, पर हां लॉकडाउन के बाद जिस तरह से हमारी धरती और आसपास की जलवायु का हाल बदला है, उसको देखते हुए हम अभी भी प्रकृति के प्रति सबक ले लें, तो बहुत कुछ बदल सकता है.

—-प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

Language: Hindi
Tag: लेख
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