Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Aug 2020 · 2 min read

मोह भंग

कुछ दिनों पूर्व मैं वाराणसी में काशी विश्वनाथ जीके दर्शन के लिए परिवार के साथ जा रहा था । करीब 2 किलोमीटर दूरी पर एक तरफा यातायात होने की वजह से हम लोग एक ई-रिक्शा पर बैठ गए । गोदौलिया चौराहे से मंदिर के गेट नंबर 4:00 तक पूरा रास्ता चढ़ाई का था , सड़क लगातार ऊंची उठती जा रही थी । वहां पहुंचकर मुझे एक विहंगम अन्न क्षेत्र दिखाई दिया जो कि मंदिर के आसपास की घनी बस्ती को साफ कर तैयार किया जा रहा था । हाल ही में उस अन्न क्षेत्र का हमारे प्रधानमंत्री जी ने उद्घाटन किया था । उस गेट नंबर 4:00 पर खड़े होकर उस स्थान की ऊंचाई और विशालता देखकर मेरे मुंह से अनायास ही निकला
‘ शायद इस जगह पर कोई पहाड़ी या ऊंचा टीला रहा होगा जिस पर इसे बनाया गया होगा । ‘
मुझे पता नहीं चला कि कब उस ई-रिक्शा चालक ने मेरे मुंह से निकली यह बात सुन ली थी । वह तुरंत पीछे मुड़कर मुझसे बोला
‘ साहब इस जगह पर इन्हें किसी ने बनाया नहीं है बल्कि हमेशा से ये यहां ऐसे ही हैं । शिव स्वयम्भू अनादि काल से सृष्टि के आरंभ के भी पहले से यहां पर विराजमान हैं । यह सारे देवी देवता आदि सब इनके बाद आए हैं ।
उसकी बात सुनते ही मुझे एक अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति का आभास हुआ । नाहक मैं जीवन भर नहा धोकर शिव श्लोकों को बिना अर्थ जाने बिना उन्हें अपने जीवन में अपनाए भजता रहा । उस क्षण मुझे अनन्त , अविनाशी , कल्पान्तकारी , देवों के देव महादेव स्वयम्भू शिव जी की विशालता अपने चहुँ ओर जहां तक मेरी सोच , समझ , कल्पनाशीलता और दृष्टि जा सकती थी आभासित हो रही थी । हम सब जीवन के उपरांत इस मृत्युलोक के आवागमन , पुनर्जन्म के बंधन से मुक्त होकर उस परम् शिव तत्व से में विलीन हो जाने की कामना करते है ।
इसके पश्चात कब मैंने औपचारिकता में एक लंबी लाइन में लग कर काफी देर बाद उस शिवलिंग के दर्शन किए और फिर उसी चालक के ई-रिक्शा पर से जाकर संकट मोचन जी के दर्शन किए मुझे नहीं याद। मुझे वह ई-रिक्शा चालक बहुत अच्छा लगा । मेरी उस शाम को मुझे उसने अन्य कुछ स्थानों पर घुमाते हुए घर लाकर उतार दिया । उसकी सवारी से उतरते समय मैंने उसको धन्यवाद दिया तो वह मुझसे बोला साहब आपको किसी गुरु की आवश्यकता है । मैंने उसे भुगतान करते हुए मन ही मन विचार किया कि गुरु तो आज तुम्हारे स्वरूप में मुझे मिल ही गए , शिवतत्त्व का मर्म मैं तुम्हारी वाणी से जान सका।

Language: Hindi
Tag: लेख
3 Likes · 2 Comments · 471 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मुक्तक-
मुक्तक-
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
अज्ञात के प्रति-1
अज्ञात के प्रति-1
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
बंदूक के ट्रिगर पर नियंत्रण रखने से पहले अपने मस्तिष्क पर नि
बंदूक के ट्रिगर पर नियंत्रण रखने से पहले अपने मस्तिष्क पर नि
Rj Anand Prajapati
देश और देशभक्ति
देश और देशभक्ति
विजय कुमार अग्रवाल
उजियार
उजियार
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
बेटियां ज़ख्म सह नही पाती
बेटियां ज़ख्म सह नही पाती
Swara Kumari arya
*गम को यूं हलक में  पिया कर*
*गम को यूं हलक में पिया कर*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
ज़रूरत के तकाज़ो
ज़रूरत के तकाज़ो
Dr fauzia Naseem shad
ग़ज़ल - कह न पाया आदतन तो और कुछ - संदीप ठाकुर
ग़ज़ल - कह न पाया आदतन तो और कुछ - संदीप ठाकुर
Sundeep Thakur
ज़माने में बहुत लोगों से बहुत नुकसान हुआ
ज़माने में बहुत लोगों से बहुत नुकसान हुआ
शिव प्रताप लोधी
चौथ का चांद
चौथ का चांद
Dr. Seema Varma
विडंबना इस युग की ऐसी, मानवता यहां लज्जित है।
विडंबना इस युग की ऐसी, मानवता यहां लज्जित है।
Manisha Manjari
आकाश के सितारों के साथ हैं
आकाश के सितारों के साथ हैं
Neeraj Agarwal
रंग हरा सावन का
रंग हरा सावन का
डॉ. श्री रमण 'श्रीपद्'
#लघुकथा
#लघुकथा
*Author प्रणय प्रभात*
2485.पूर्णिका
2485.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
*नया अमृत उद्यान : सात दोहे*
*नया अमृत उद्यान : सात दोहे*
Ravi Prakash
प्यार लिक्खे खतों की इबारत हो तुम।
प्यार लिक्खे खतों की इबारत हो तुम।
सत्येन्द्र पटेल ‘प्रखर’
शब्दों मैं अपने रह जाऊंगा।
शब्दों मैं अपने रह जाऊंगा।
गुप्तरत्न
कविता-शिश्कियाँ बेचैनियां अब सही जाती नहीं
कविता-शिश्कियाँ बेचैनियां अब सही जाती नहीं
Shyam Pandey
बवंडर
बवंडर
Shekhar Chandra Mitra
लोग आते हैं दिल के अंदर मसीहा बनकर
लोग आते हैं दिल के अंदर मसीहा बनकर
कवि दीपक बवेजा
अधि वर्ष
अधि वर्ष
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
स्वभाव
स्वभाव
अखिलेश 'अखिल'
वतन के लिए
वतन के लिए
नूरफातिमा खातून नूरी
सपने सारे टूट चुके हैं ।
सपने सारे टूट चुके हैं ।
Arvind trivedi
पानी में हीं चाँद बुला
पानी में हीं चाँद बुला
Shweta Soni
अपने ज्ञान को दबा कर पैसा कमाना नौकरी कहलाता है!
अपने ज्ञान को दबा कर पैसा कमाना नौकरी कहलाता है!
Suraj kushwaha
" दीया सलाई की शमा"
Pushpraj Anant
आधार छंद - बिहारी छंद
आधार छंद - बिहारी छंद
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
Loading...