Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Feb 2021 · 3 min read

” मैं “के चक्कर में , जब आ गया मैं!

जब तक मैं,
बिन” मैं “के था,
इसका ना कोई अता पता था,
अपनी मस्ती में ही खुश था!

ना जाने इसने कब आ दबोचा,
कभी ना मैंने इस पर सोचा,
अचानक एक दिन इसने,अहसास कराया,
जब छोटी सी किसी बात पर मैं, भड़क गया,
नहीं नहीं,ये नहीं हो सकता,
मुझे नहीं है इसका पता,
काम तुम्हारा है तुम ही लगाओ पता,
मुझ पर ना यह अधिकार जताओ,
मैं तो सबसे यही कहता हूं,
जितना हो सकता है मुझसे ,
मैं उतना ही करता हूं!

उस दिन से ही “मैं “ने अपना रंग दिखाना शुरु किया,
मुझमें घुस कर,अपना असर दिखाना शुरु किया,
तब से मैं उसके बुने जाल में फंसता गया,
ऐसा डूबा की फिर ना निकल पाया
ना ही मैं इसका अहसास कर पाया,
है कोई मुझ में समाया!

यह सबकुछ समय चक्र के साथ चलता रहा,
जब तक मुझसे रहता काम किसी का,
वह मिलने आ ही जाता भूला भटका,
और” मैं” अपने ही निराले अंदाज में,
कर के काम जो होता मेरे हाथ में,
जता दिया करता,
देखो, मैंने तुम्हारा काम शीघ्र कर दिया,
ना उलझाया ना टरकाया,
ना बार-बार तुमसे चक्कर लगवाया,
अब की बार मैं फिर से खड़ा हो रहा हूं,
तुम से अभी से कह रहा हूं,
समय आने पर, साथ मेरा दे देना,
अपने लोगों से भी कह देना,
जीत गए तो ऐसे ही काम आते रहेंगे,
यदि ना जीताया तो पछताएंगे!

आने जाने वाले आते जाते,
हां में हमारी वह हां मिलाते,
पूरा भरोसा कायम कर जाते,
कभी ना इसका भान हुआ,
लड गया चुनाव तो काम तमाम हुआ,
रह गया देखते यह क्या हुआ,
ऐसा यह कैसे हुआ,
करता रहा मैं यह विचार,
ऐसा क्यों किया मुझसे व्यवहार,
क्यों हो गई मेरी हार!

धीरे धीरे समय चक्र आगे बढ़ा,
आने जाने वालों का आना-जाना बंद हुआ,
मैं खाली समय गुजारता रहा,
अपने अन्य कार्यों में जूट गया,
एक दिन अचानक फिर से कोई आया,
मुझे पुकारने लगा,
मैं भी उत्सुकता वश बाहर आ गया,
आगंतुक ने दुआ सलाम किया,
फिर आने का अपना मंतव्य बता दिया,
मैंने संकोच करते हुए पुछ लिया,
भाई ये बता,
यह काम तो है उनका,
फिर तू मेरे पास क्यों आ गया,
उसने जो कुछ बयां किया,
मैं सिर से पैर तक सिहर गया,
कहने लगा,
हमने तो तुम्हें सबक सिखाने को,
था उसे खड़ा किया,
अब वह ऐंठ रहा है,
बहुत ज्यादा,
ठीक नहीं है ,
उसका इरादा,
ना समय पर मिलता है,
ना ही कोई काम सहजता से करता है,
लिखना पढ़ना भी नहीं आता उसे,
भेज देता है वह हमें,
पास किसी और के,
वहां से लिखवा कर ले आना,
मुहर तब मुझसे लगवा जाना।
गलत हमसे ये काम हुआ,
पछता रहे हैं सब यहां!

मैंने भी अपने अंदर झांक कर देखा,
अपने बिताए समय को याद किया,
कहीं तो मुझसे भी भूल हुई थी,
जिसके लिए इन्होंने यह चाल चली थी,
यदि “मैं” ने कुछ कर के जताया ना होता,
तो मेरा हार कर यह हस्र हुआ नहीं होता,
तब मेरे अंदर ही यह खोट आ गया था,
जो मेरे हाथ का काम था ,
उस पर अहसान जता रहा था,
अचानक यह मुझको क्या हो गया था,
आ रहा था समझ में,
यह मेरा ” मैं,”
मुझको चला रहा था,
यह मेरा ही “मैं,”
जो मेरा अपना नहीं हुआ,
इसके लिए मैं,
अपना सब कुछ लुटा रहा था।
अब जब समय चक्र ने,
जो निकल गया समय,
अपने वक्त पर,
चला गया ,असक्त कर,
छींण हो गया है आत्मबल,
समझ में आ रहा है इस,
“मैं “का छल,
क्यों पलने दिया मैंने इसे,
जो अनायास ही,
समा गया था मुझमें,
अहंकार बन।

Language: Hindi
1 Like · 6 Comments · 462 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Jaikrishan Uniyal
View all
You may also like:
#लघुकथा
#लघुकथा
*Author प्रणय प्रभात*
हमेशा तेरी याद में
हमेशा तेरी याद में
Dr fauzia Naseem shad
*साम वेदना*
*साम वेदना*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
💐प्रेम कौतुक-222💐
💐प्रेम कौतुक-222💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
तुम भी पत्थर
तुम भी पत्थर
shabina. Naaz
*बस एक बार*
*बस एक बार*
Shashi kala vyas
रंजीत कुमार शुक्ल
रंजीत कुमार शुक्ल
Ranjeet kumar Shukla
सपने जब तक पल रहे, उत्साही इंसान【कुंडलिया】
सपने जब तक पल रहे, उत्साही इंसान【कुंडलिया】
Ravi Prakash
मायने रखता है
मायने रखता है
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
उपमान (दृृढ़पद ) छंद - 23 मात्रा , ( 13- 10) पदांत चौकल
उपमान (दृृढ़पद ) छंद - 23 मात्रा , ( 13- 10) पदांत चौकल
Subhash Singhai
मूझे वो अकेडमी वाला इश्क़ फ़िर से करना हैं,
मूझे वो अकेडमी वाला इश्क़ फ़िर से करना हैं,
Lohit Tamta
लगे रहो भक्ति में बाबा श्याम बुलाएंगे【Bhajan】
लगे रहो भक्ति में बाबा श्याम बुलाएंगे【Bhajan】
Khaimsingh Saini
हर सुबह उठकर अपने सपनों का पीछा करना ही हमारा वास्तविक प्रेम
हर सुबह उठकर अपने सपनों का पीछा करना ही हमारा वास्तविक प्रेम
Shubham Pandey (S P)
उजालों में अंधेरों में, तेरा बस साथ चाहता हूँ
उजालों में अंधेरों में, तेरा बस साथ चाहता हूँ
डॉ. दीपक मेवाती
मन डूब गया
मन डूब गया
Kshma Urmila
माह -ए -जून में गर्मी से राहत के लिए
माह -ए -जून में गर्मी से राहत के लिए
सिद्धार्थ गोरखपुरी
जीवन में जीत से ज्यादा सीख हार से मिलती है।
जीवन में जीत से ज्यादा सीख हार से मिलती है।
Dr. Pradeep Kumar Sharma
गीता में लिखा है...
गीता में लिखा है...
Omparkash Choudhary
🍂🍂🍂🍂*अपना गुरुकुल*🍂🍂🍂🍂
🍂🍂🍂🍂*अपना गुरुकुल*🍂🍂🍂🍂
Dr. Vaishali Verma
ईश ......
ईश ......
sushil sarna
भारी लोग हल्का मिजाज रखते हैं
भारी लोग हल्का मिजाज रखते हैं
कवि दीपक बवेजा
तेरी सारी चालाकी को अब मैंने पहचान लिया ।
तेरी सारी चालाकी को अब मैंने पहचान लिया ।
Rajesh vyas
"जिद"
Dr. Kishan tandon kranti
वैज्ञानिक युग और धर्म का बोलबाला/ आनंद प्रवीण
वैज्ञानिक युग और धर्म का बोलबाला/ आनंद प्रवीण
आनंद प्रवीण
कुछ मीठे से शहद से तेरे लब लग रहे थे
कुछ मीठे से शहद से तेरे लब लग रहे थे
Sonu sugandh
चन्द्रयान 3
चन्द्रयान 3
Neha
23/98.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/98.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मन के झरोखों में छिपा के रखा है,
मन के झरोखों में छिपा के रखा है,
अमित मिश्र
धूम मची चहुँ ओर है, होली का हुड़दंग ।
धूम मची चहुँ ओर है, होली का हुड़दंग ।
Arvind trivedi
अरमान
अरमान
Kanchan Khanna
Loading...