Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Jul 2020 · 3 min read

मैं अपनी राय से परेशान था

हर एक की किसी वस्तु, व्यक्ति,परिस्थिति, घटना के बारे में एक खास राय होती है।

कभी कभी हम उसे जाहिर नहीं करना चाहते ।

और कभी कभी हमारी सोच ही अधपकी सी होती है, इसलिए हम चुप रह जाते है,या फिर इससे उलट कुछ ज्यादा ही मुखर हो जाते हैं।

मेरा किस्सा कुछ यूं है कि मेरे दिमाग में “राय” तब से बनती जा रही है जब मुझे इस शब्द के अर्थ का भी पता नहीं था।

बचपन में दिमाग स्पॉन्ज की तरह होता है, जो भी देखता है और सुनता है उसे सोंख़ लेता है।

और अपनी सीमित जानकारी के दायरे में राय भी बनाना शुरू कर देता है।

मसलन,

निकर पहने नंगे बदन आंगन मे खेल रहा था कि दादी को किसी को कहते सुना,

“फलाने की नई दुल्हन को देखा क्या, एक दम तांबे जैसा रंग है, लड़का तो गोरा चिट्टा है, सुना है मायके से बहुत दहेज लेकर आई है”

मुझको ज्यादा तो समझ में नहीं आया पर ये बात दिमाग में कहीं घर कर गई।

इसका असर ये हुआ कि कुछ दिन बाद चचेरे फूफाजी जो सांवले रंग के थे जब हमारे घर आये तो उनके बुलाने पर भी मैं उनकी गोद में नहीं बैठा।

मेरी दादी उनके स्वागत सत्कार में बिछी जा रही थी।

पर मैं अपनी राय पर कायम रहा!!!

ये अलग बात है कि जब उन्होंने मेरे लिए बाजार से टॉफियाँ मंगवाई तब जाकर मेरा दिल पसीजा।

पर अब एक नई सोच ने जन्म ले लिया था कि फूफा तो काला भी चलेगा पर बहु गोरी होनी चाहिए।

ये राय काफी दिनों तक दिमाग में टिकी रही और मैंने अपनी एक रंगभेद की नीति भी बना ली थी।

मसला तब खड़ा हुआ, जब दादी को काफी दिनों बाद,उसी दुल्हन का जिक्र करते सुना, वो पड़ोसन को कह रही थी

“सुना है फलाने की बहू स्वभाव की बड़ी अच्छी है, सास ससुर की बहुत सेवा करती है। सच में बहन रंग रूप में क्या रखा है, असल तो संस्कार और गुण ही होते हैं”

मेरा कच्चा दिमाग फिर परेशान हो गया।

फिर एक पड़ोस के दादाजी जी जो दिखने में तो गोरे थे , हम बच्चों को एक दिन बिना बात के ही डांट दिया।

उसके बाद धीरे धीरे मैंने रंग के आधार पर अच्छा बुरा तय करने की अपनी नीति में थोड़ी थोड़ी ढील देनी शुरू कर दी।

एक बार मैं पिताजी के साथ दीदी के ससुराल गया। जाते वक्त मां ने उनको हिदायत दी कि वहां कुछ खा मत लेना। हम लड़की वाले हैं।
ये तो बच्चा है पर आप मत खाना।

खैर, पिताजी ने वहां खाना तो नहीं खाया, दो बार चाय जरूर पी और हर बार चाय पीकर दीदी के हाथ में एक रुपये का सिक्का रख देते।

एक दिन पिताजी को दुकान पर चाय पीते देखा। पिताजी ने चाय पीकर चायवाले दुकानदार को पैसे दिए। तो पता नहीं क्यों दीदी का चेहरा नजरों में घूम गया।

क्या दीदी इतनी परायी हो गयी थी?

ऐसे ही स्कूल से लौटते वक्त मैंने अपने दोस्त जो इसी चायवाले चाचा का बेटा था, के घर कुछ खा लिया, माँ को जब ये बात पता चली तो उन्होंने खूब डांटा।

तब नन्हे दिमाग मे एक राय बनी कि उनकी दुकान पर चाय पीने में कोई हर्ज नहीं है, बस उनके घर पर खाना नहीं है!!

इसी तरह सोचों ने खाली दिमाग में धीरे धीरे अपना घर बनाना शुरू कर दिया।

निरीह और सीधी-साधी सोचें तो शांति से रहती थी।

पर कुछ तेज सोचों ने तो एक दूसरे से लड़ना भी शुरू कर दिया, प्रश्न फेंकते हुए ।

जो एक दूसरे पर भारी पड़ी वो टिकी रहीं।

फिर यूँ भी हुआ कि कुछ सोचें आपस में मिली तो कई नन्ही नन्ही सोचों ने जन्म ले लिया।

बचपन में इन से परेशानी तो बहुत थी, पर अपने दिमाग का क्या करता मैं?

कहीं फेंक भी तो नही सकता था?

ये प्रक्रिया आज भी चल रही है इस सिरफिरे दिमाग में।

यदि आप इन सब से बचे हुए हैं तो आप भाग्यशाली हैं।

दादी तो बचपन मे बोलती भी थी पता नही कर्मजले के दिमाग में क्या क्या चलता रहता है।

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 356 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Umesh Kumar Sharma
View all
You may also like:
हिदायत
हिदायत
Bodhisatva kastooriya
जालिमों तुम खोप्ते रहो सीने में खंजर
जालिमों तुम खोप्ते रहो सीने में खंजर
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
हिचकियां
हिचकियां
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
"चाँदनी रातें"
Pushpraj Anant
इसमें हमारा जाता भी क्या है
इसमें हमारा जाता भी क्या है
gurudeenverma198
तारो की चमक ही चाँद की खूबसूरती बढ़ाती है,
तारो की चमक ही चाँद की खूबसूरती बढ़ाती है,
Ranjeet kumar patre
बहुत ऊँची नही होती है उड़ान दूसरों के आसमाँ की
बहुत ऊँची नही होती है उड़ान दूसरों के आसमाँ की
'अशांत' शेखर
वक्त के दामन से दो पल चुरा के दिखा
वक्त के दामन से दो पल चुरा के दिखा
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
💐प्रेम कौतुक-376💐
💐प्रेम कौतुक-376💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
" आज चाँदनी मुस्काई "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
तुम गजल मेरी हो
तुम गजल मेरी हो
साहित्य गौरव
एक चिडियाँ पिंजरे में 
एक चिडियाँ पिंजरे में 
Punam Pande
अगर कभी अपनी गरीबी का एहसास हो,अपनी डिग्रियाँ देख लेना।
अगर कभी अपनी गरीबी का एहसास हो,अपनी डिग्रियाँ देख लेना।
Shweta Soni
पिता
पिता
Kanchan Khanna
**कुछ तो कहो**
**कुछ तो कहो**
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
हैं सितारे डरे-डरे फिर से - संदीप ठाकुर
हैं सितारे डरे-डरे फिर से - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
पलक झपकते हो गया, निष्ठुर  मौन  प्रभात ।
पलक झपकते हो गया, निष्ठुर मौन प्रभात ।
sushil sarna
जलन इंसान को ऐसे खा जाती है
जलन इंसान को ऐसे खा जाती है
shabina. Naaz
सज्जन से नादान भी, मिलकर बने महान।
सज्जन से नादान भी, मिलकर बने महान।
आर.एस. 'प्रीतम'
अस्ताचलगामी सूर्य
अस्ताचलगामी सूर्य
Mohan Pandey
*नयी पीढ़ियों को दें उपहार*
*नयी पीढ़ियों को दें उपहार*
Poonam Matia
यादों का थैला लेकर चले है
यादों का थैला लेकर चले है
Harminder Kaur
Do you know ??
Do you know ??
Ankita Patel
"परखना सीख जाओगे "
Slok maurya "umang"
कौन जाने आखिरी दिन ,चुप भरे हों या मुखर【हिंदी गजल/गीतिका 】
कौन जाने आखिरी दिन ,चुप भरे हों या मुखर【हिंदी गजल/गीतिका 】
Ravi Prakash
■ यादों का झरोखा...
■ यादों का झरोखा...
*Author प्रणय प्रभात*
"ऐसा क्यों होता है?"
Dr. Kishan tandon kranti
"व्यक्ति जब अपने अंदर छिपी हुई शक्तियों के स्रोत को जान लेता
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
बैठा ड्योढ़ी साँझ की, सोच रहा आदित्य।
बैठा ड्योढ़ी साँझ की, सोच रहा आदित्य।
डॉ.सीमा अग्रवाल
जाने वाले साल को सलाम ,
जाने वाले साल को सलाम ,
Dr. Man Mohan Krishna
Loading...