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6 Feb 2017 · 1 min read

मेरी यादगार यात्रा

आज चढ़ा था,
मैं बस के ऊपर,
बस के ऊपर,
मतलब उसकी,
छत के ऊपर,
थी वो खटहरा,
ढ़न-ढन करती,
बस की दिवारें,
खटर-खटर थी,
उसकी आवाजें,
डर तो बहुत था,
दिल में मेरे,
पर य़ात्रा करने को,
भी मैं लाचार था,
जब हिलती- डुलती,
वो ज्यादा थी,
कलेजा मुंह को,
आ जाता था,
डर लगता था कि,
कहीं विपरीत न हो जाये,
मैं नीचे और बस,
ऊपर न हो जाये,
धीमी हो गयी थी,
मेरे नाड़ी की गति,
शांत सा हो गया था,
दिल का धड़कन,
क्यूँकि ये य़ात्रा थी पहली मेरी,
न चढ़ा था बस के छत पर कभी,
इतना डरा रहने पर भी,
यात्रा करना,थी मेरी लाचारी,
क्यूँ कि इसके बाद नहीं थी,
“भागलपुर ” आने को कोई गाड़ी,
दुआ कर रही थी,
घर मेरे सही सलामत,
पहूँचने की मेरी मैया,
और मैं भी ठीक-ठाक
पहूँच गया घर,
क्यूँकि कबाड़ी रहने पर भी,
तेज थी उस गाड़ी की पहीया.
——- राहुल श्रीवास्तव

Language: Hindi
1260 Views
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