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4 Sep 2018 · 1 min read

मेरी तकदीर

सब चले जाते हैं।
मैं बंद कमरे में
अकेली रह जाती हूँ।
तन्हाईयों से लड़ती हूँ।
उन्हीं से बातें करती हूँ।

दरों-दिवार चिखती हैं,
खड़ा-खड़ा मुझे घूरती हैं।
छत भी आँख में आँख डालकर,
मुझसे कुछ पूछती हैं।

क्या यही मेरी जिंदगी है
चुल्हा – चौका और काम,
ये सब करके भी
हूँ मैं बदनाम।
नहीं करती कोई काम,
घर में पड़े-पड़े करती है आराम।
ऐसी बातों का मुझे मिलता है इनाम।
जिन्दगी बस रह गई नाकाम।

दीवारों पर टंगी तस्वीर,
पढ़ रही मेरे माथे की लकीर।
कह रही क्या यही है मेरी तकदीर।
कुछ कर अपने लिए भी तदबीर।
-लक्ष्मी सिंह

Language: Hindi
4 Likes · 2 Comments · 458 Views
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