मुक्तक
बेवज़ह ही मन में कुछ सपनें करबट बदल रहें हैं
हँसुआ और हथौड़े उठाने को हांथ मचल रहे हैं !
… सिद्धार्थ
***
ये जो इंक़लाबी रफ़्तार है अपने ढंग से आएगा
कभी मेरे कभी तेरे सर की बलि ले कर जायेगा !
…सिद्धार्थ
बेवज़ह ही मन में कुछ सपनें करबट बदल रहें हैं
हँसुआ और हथौड़े उठाने को हांथ मचल रहे हैं !
… सिद्धार्थ
***
ये जो इंक़लाबी रफ़्तार है अपने ढंग से आएगा
कभी मेरे कभी तेरे सर की बलि ले कर जायेगा !
…सिद्धार्थ