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25 Nov 2018 · 1 min read

माँ

कि लगा बचपन में यू अक्सर अँधेरा ही मुकद्दर है.
मगर माँ होसला देकर यू बोली तुम को क्या डर है,

मै अपना पन ही अक्सर ढूंढती रहती हुँ रिश्तो में
तेरी निश्छल सी ममता कहीं मिलती नहीं माँ.

गमों की भीड़ में जिसने हमें हंसना सिखाया था
वह जिसके दम से तूफानों ने अपना सिर झुकाया था

किसी भी जुल्म के आगे, कभी झुकना नहीं बेटी
सितम की उम्र छोटी है मुझे माँ ने सिखाया था

भरे घर में तेरी आहट कहीं मिलती नहीं माँ
तेरी हाथों की नर्माहट कहीं मिलती नहीं माँ

मैं तन पर ला दे फिरता दुसाले रेशमी
लेकिन तेरी गोदी की गर्माहट कहीं मिलती नहीं माँ

तैरती निश्छल सी बातें अब नहीं है माँ
मुझे आशीष देने को अब तेरी बाहें नहीं है माँ

मुझे ऊंचाइयों पर सारी दुनिया देखती है
पर तरक्की देखने को तेरी आंखें नहीं है बस अब माँ

-शशी लता जैन

Language: Hindi
8 Likes · 9 Comments · 567 Views
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