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11 Nov 2018 · 1 min read

माँ ही जीवन

कविता-माँ
कविता

वसुधा-सी आँचल फैलाए..
वात्सल्य की वो मूरत है।
कैसे कह दूँ भगवान नहीं देखा,
एक माँ उनकी सूरत है।
अपनी ममता की छाँव तले वो…
संपन्न करती संसार है माँ।
मानव जाति का आधार है माँ।।
दुख-सुख में संयम बनाती..
हर मुश्किल को सहती है।
खुद को भूखा रखकर वो..
भगीरथी-सी बहती है।
तेरी महिमा शब्दों से कहाँ तक…
तू तो परवरदिगार है माँ।
मानव जाति का आधार है माँ।।
तूने ही खुदा को जन्म दिया..
असूरों को भी पाला है।
तुझमें माँ,पत्नी,बहन और बेटी..
तू करुणामयी-सी ज्वाला है।
हम तुझको क्या अर्पण कर पायें?…
तेरा ही सब उपकार है माँ।।

रोहताश वर्मा”मुसाफिर”
नोहर (हनुमानगढ़) राजस्थान

15 Likes · 112 Comments · 1056 Views
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