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2 Nov 2018 · 1 min read

माँ केवल माँ

।। माँ केवल माँ ।।

तपती-भरी दोपहरी में पसीना बहाती ।
महल नहीं, झोंपड़ी की छाँव देना चाहती।
चीथड़े पल्लू से लाल को लू से बचाती ।
प्यास भूल अपनी, सपनों के पतंग उड़ाती ।
वह माँ केवल माँ ।।
बिना थके पत्थरों पर चोट लगाते जाती ।
जो कमाया उसमें क्या समेटूँ , क्या खरीदूँ ?
क्रूर शराबी पति की क्रूरता दिल धड़काती।
सोच कुछ, पत्थर दिल के लिए आँसू बहाती
वह माँ केवल माँ ।।
पत्थर नर्म, पर पत्थर दिल कैसे पिघलाती?
चलती हथौड़े की हत्थी शायद ढाँढस बंधाती
कोमल है, कमजोर नहीं, यही याद दिलाती।
लाल के उज्जवल भविष्य के स्वप्न सजाती
वह माँ केवल माँ ।।
मुक्ता शर्मा
बटाला शहर

52 Likes · 323 Comments · 2683 Views
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