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23 May 2020 · 2 min read

महाभारत के बदलतें रंग

बाल्यकाल से युवावस्था तक हमनें क्रमशः तीन महाभारत देखी, बी आर चोपड़ा साहब की सहज महाभारत ,एकता कपूर की धधकती महाभारत और वर्तमान में प्रसारित आज की राजनैतिक महाभारत ।
तीनों को एक पटरी पर रख कर देखा जाए तो पटरी लहरनुमा नज़र आती है,बी आर चोपड़ा साहब की महाभारत में नियम थे,सादगी थी,धर्मोपदेश थे, यहाँ तक ब्लैक एंड वाइट टीवी में भी वह रंगीन ही दिखती थी।

वहीँ एकता जी की महाभारत में विज्ञान के सभी नियमों को बेबाक़ी से उपयोग किया गया है ,बेहतर क्वालिटी के तीर ,उच्च मारक क्षमता,सुपर डिफेंसिव सिस्टम और फोटोइलेक्ट्रिक इफ़ेक्ट का कुशल उपयोग है।

जहाँ पहले की महाभारत में एक तीर से 6 से 7 तीर निकलतें थे ,वही एकता जी की महाभारत में 20 से 25 तीर साधारण से साधारण योद्धा निकालने में सक्षम है ।
पर सभी को धता बताती आज की महाभारत में नेतागणों का एक कथन लाखों विषैले तीर पुंज के समान आघात करते है और इंसानियत, रोड़ो पे बिलखती नजर आती है ।

इन उच्चावचों के बीच कुछ समानताएं भी है ,कठोर और निष्पक्ष निर्णय की कमी का परिणाम भीषण युद्ध के रूप में सामने आया,यही स्थिति एकता के महाभारत में भी थी बस निर्णयों में आवेग की प्रधानता हो चली थी, जो आगे चलकर आज की महाभारत का मुख्य सूत्रधार बन गया। जाति ,धर्म ,रंग,मज़हब आदि को धृतराष्ट्र ज्योति से देखना और एकपक्षीय निर्णय लेने की परंपरा ने सामाजिक संरचना को बिखेर कर रख दिया ।

अगर कुछ नही बदला तो वह युद्ध नीति की ‘मैनी टू वन’ की पॉलिसी हैं ।यह अनवरत चल रही है ,कभी इसका शिकार अभिमन्यु को बनना पड़ा तो कभी पालघर के साधुओं को,तो कभी आपको और तो कभी हमको। यह सिद्ध करता है कि महाभारत काल से ही हम निर्णय भीड़ से करते आये है।

महाभारत की साधारण सेना तलवार चलाना जानती थी ,छुटपुट झडपों से ख़ुद को बचाने में सक्षम थी, पर
महाभारत की वो साधारण सेना आज के लोकतंत्र के वो नागरिक बन गए है जिन्हें तलवार अर्थात संवैधानिक अधिकारों का ज्ञान ही नही है और राजनीतिक पार्टियां अपने स्वार्थ के लिए धर्म और जाति के नाम पर लड़ाते हैं और वे गाजर मूलियों जैसे काटे जाते है ,शायद ऐसा नरसंहार तो महाभारत में भी नही हुआ होगा।

Language: Hindi
Tag: लेख
5 Likes · 5 Comments · 503 Views
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