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30 Jan 2017 · 1 min read

मशविरा है मिरा…..

???? ग़ज़ल ????
बह्र – 212-212-212-212
(फायलुन फायलुन फायलुन फायलुन)

मशविरा है मिरा आमजन के लिए।
वक़्त पर वक़्त दो तुम वतन के लिए।

रोजी-रोटी कमाना ज़रूरी मगर।
एक पल तो निकालो भजन के लिए।

आपाधापी में क्यों दिल जलाते फिरो।
दो घड़ी तो जिओ तुम सजन के लिए।

धन कमाने को कितने चुने रास्ते।
एक कोशिश करो उर शमन के लिए।

वारिसों के लिए तो तिजोरी भरी।
कुछ करो प्यारे अपने वतन के लिए।

है शहीदों ने सींचा इसे खून से।
तुम पसीना ही दे दो चमन के लिए।

भारती पर अगर तुम निछावर हुए।
तो तिरंगा मिलेगा कफ़न के लिए।

जान जाये मगर शान जाये नहीं।
सर कटा देना रक्षा वचन के लिए।

“तेज”तूफानों में जो डटा रह सके।
वो दिया बन जलो तम हरन के लिए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
तेजवीर सिंह ‘तेज’

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