भू -घटा संवाद
वारिश का मौसम और वरसात आत्मा की पुकार परमात्मा से
सुनिए धरा क्या कहती है घटा से एक आत्मीय संवाद
भू घटा संवाद
काली घटायें घिर घिर कर, प्यासे हृदय को दहकाती हैं
बन बदली छाये गगन पर, प्यासे की प्यास जगाती है
उम्मीद जगाकर वारिश की, बूंदों में आग लगाती हैं
झुक जाती भू से मिलन को, पल पल ये तरसाती हैं
प्यासे की——-
प्रीत बनी प्रतीक्षा भू की, नीलगगन को ध्याती है
देखके नभ् के इंद्रधनुष को, अपना श्रृंगार सजाती है
प्यासे हृदय——
आन मिलो पिय जिया बुलाये, मेरी हूंक ही पपीहा गाये
मोहे उड़ा दे अब चुनरिया, अँखियन आस जगाती है
प्यासे की——
चैन मिले ना रैन कटे, तुम बिन कैसे सेज सजे
युगों पुरानी प्रीत हमारी, मिलन की आस जगाती है
प्यासे हृदय——
घटा उवाच–
मदमाती,इतराती,इठलाती, बरस पड़ी मद को छलकाती
कहे धरा से फिर फैला बाहें, क्यों मुझको ऐसे बुलाती है
प्यासे की————-
झुलसाया मुझे तेरी प्यास ने, बरस पड़ी बनके तब रिमझिम
भूल गगन की ऊंचाई को, तेरे प्रीत के गीत को गाती है
प्यासे हृदय————-
बन फुहार तेरे प्रीतम की, तेरे उर की क्षुधा बुझाती है
अतृप्त तेरी अन्तस् की ज्वाला, फिर मेरे ही गीत को गाती है
मेरा दृष्टिकोण
प्यासे की प्यास बुझाती है, बूंदों से आँचल को सजाती है
हरियाली की ओढ़ ओढ़नी , गीत मल्हार तब गाती है
प्यासे की ——-
महक उठे तब वसुंधरा, झूलों पर मीत के राग सजे
इठलाई सरिता तरुनाई, मन मधुवन महकाती है
प्यासे हृदय—