भले पास में हो खज़ाना गया है
भले पास में हो खज़ाना गया है
मगर आदमी रह अकेला गया है
न ताज़ी हवा में ले अब साँस पाते
धुँआ ही धुँआ हर तरफ छा गया है
रहें लोग अपने में ही सिमट कर
दिलों को यहाँ नेट जो भा गया है
ठहाके भी लगते हैं अब योग द्वारा
ये कैसा नया आ ज़माना गया है
सुनो दिल की आवाज को ‘अर्चना’ तुम
कलम थाम लो अब समय आ गया है
डॉ अर्चना गुप्ता