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11 Nov 2019 · 2 min read

फ़िक्र

ससुर जी के अचानक आ धमकने से बहु रमा तमतमा उठी-लगता है, बूढ़े को पैसों की ज़रूरत आ पड़ी है, वरना यहाँ कौन आने वाला था… अपने पेट का गड्ढ़ा भरता नहीं, घरवालों का कहाँ से
भरोगे…पत्नी रमा की बडबडाहट सुन रमेश नज़रें बचाकर दूसरी ओर देखने लगा….उधर पिताजी नल
पर हाथ-मुँह धोकर सफ़र की थकान दूर कर रहे थे वही रमेश सोच रहा था इस बार वैसे भी हाथ कुछ ज्यादा ही तंग हो गया… बड़े बेटे का जूता फट चुका है…
वह स्कूल जाते वक्त रोज भुनभुनाता है…
पत्नी रमा के इलाज के लिए पूरी दवाइयाँ नहीं खरीदी जा सकी…और उसपर बाबूजी को भी अभी आना था…
घर में बोझिल चुप्पी पसरी हुई थी। खाना खा चुकने पर
पिताजी ने रमेश को पास बैठने का इशारा किया रमेश अब और शंकित था कि कोई आर्थिक समस्या लेकर आये होंगे पिताजी कुर्सी पर उकड़ू
बैठ गए… एकदम बैफिक्र …सुनो बेटा रमेश..
कहकर उन्होंने ध्यान अपनी ओर खींचा….रमेश सांस रोकर उनके मुँह की ओर देखने लगा… रोम-रोम कान बनकर अगला वाक्य सुनने के लिए चौकन्ना था।
मगर वे बोले, “खेती के काम में घड़ी भर भी फुर्सत नहीं मिलती बेटा… और इस बखत काम का जोर है रात की गाड़ी से वापस जाऊँगा तीन महीने से तुम्हारी कोई चिट्ठी तक नहीं मिली जब तुम परेशान होते हो, तभी ऐसा करते हो ….कहा उन्होंने जेब से सौ-सौ के नोट की गड्डी निकालकर उसकी तरफ बढ़ा दिए, “रख लो। तुम्हारे
काम आएंगे। धान की फसल अच्छी हो गई थी। घर मेंकोई दिक्कत नहीं है…वैसे तुम बहुत कमजोर लग रहे हो। ढंग से खाया-पिया करो। बहू का भी ध्यान रखो शर्मिंदगी से खडे रमेश और रमा कुछ नहीं बोल पाये..।शब्द जैसे दोनों की हलक में फंसकर रह गये हों।
रमेश इससे पहले कुछ कहता इससे पूर्व ही पिताजी ने प्यार से डांटा, “ले लो…बहुत बड़े हो गये हो क्या…
जी….नहीं तो…रमेश ने हाथ बढ़ाया पिताजी ने नोट उसकी हथेली पर रख दिए …अचानक बरसों पहले की वो याद ताजा हो गई जब पिताजी स्कूल भेजने के लिए
इसी तरह हथेली पर अठन्नी टिका देते थे, पर उस समय रमेश की नज़रें आज की तरह झुकी नहीं होती थी..

Language: Hindi
3 Likes · 4 Comments · 518 Views
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