Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
13 Feb 2018 · 3 min read

प्रिया-प्रियतम संवाद केन्द्र बिन्दु—वही चिर परचित पकौड़ा (चाय-पकौड़ा श्रंखला कविता संख्या-03)

प्रिया उवाच:-

प्रिया ने बड़े प्रेम प्रियतम को पुकारा,
आँखों से देकर तिरछा सा इशारा,
बुरे वक्त में कौन किसका सहारा ?
कुछ तो करो, अब होता न गुजारा,
सरकारें क्या ये तो आती जाती रहेंगी ?
जुमले बाजी से मन को सुलगाती रहेंगी,
कुछ ने कहा था 34 में मिलता भरपेट खाना,
और जाने क्या-क्या सपने दिखाए थे नाना,
अब पड़ोसी भी वोटों पर देते हैं ताना,
बाजार जाना तो गर्म पकौड़े ही लाना॥1॥

प्रियतम उवाच:-

प्रियतम का दिमाग खराब था ज्यादा,
भला कुछ न कहने का था इरादा,
कहते भी क्या ? संस्कृति से जो जुड़े थे,
पर अभी भी वह पार्टी से जुड़े थे,
मिसमिसा के कहा तू है अभी बच्ची,
बात कह दूँगा बात कड़वी व सच्ची,
खाते में 15 लाख आना तब तो तू भी सोचती थी,
वोट न देना कहीं और, तब तो तू भी रोकती थी,
अब मालूम पड़ेगा कि पैसे कैसे कमाना,
बाजार जाना तो गर्म पकौड़े ही लाना॥2॥

प्रिया उवाच:-

न नाराज़ हो प्रियतम हो तुम मेरे,
काटेंगे चाय से दिन-रात और ये सबेरे,
चुप्पा रहो न कहो गम किसी से,
अब बटन दवाएगें अपनी खुशी से,
सहेंगे अभी और इन अच्छे दिनों को,
सहेंगे जुमले और वचन के इन किलों को,
न खाने को सब्ज़ी न पीने को पानी,
गलत वोट देकर याद आती है नानी,
हलुआ बनाती हूँ, तुमको जो हैं मनाना,
बाजार जाना तो गर्म पकौड़े ही लाना॥3॥
प्रियतम उवाच:-

हलुआ खिला या खिला कचोड़ी पूरी,
जुमलेनुमा न बातें कर यह अधूरी,
तेरी बातें न मेरे मन को हैं भाती,
क्यों? हलुआ खिलाकर मुझे हैं चिड़ाती,
न हलुआ खिला न खिला मुझे पकौड़ा,
कोई नेता नहीं हूँ तेरा पति हूँ निगोड़ा,
तेरी ही खातिर मेरी यह हालत हुई है,
दर्द उठता ऐसे जैसे छाती में घुसी सुई है,
नोटबन्दी की पुरानी बातें, अब मुझे न बताना,
बाजार जाना तो गर्म पकौड़े ही लाना॥4॥

प्रिया उवाच:-

माफी मुझे दो पिताजी की अब तो,
हूक उठती है अब, वोट देते थे तब तो,
करूँ में प्रार्थना अपने नेताओं के समूह से,
जो करते थे वादे लोगों के हुजूम से,
रोजगार देंगे, और न जाने क्या क्या देंगे,
जो मिला न कभी,वह भी तुम्हें देंगे,
युवाओं को वही अब दिखाते अगूंठा,
क्यों न कहें अब उन्हे अब हम महाझूठा,
न रोकों युवाओं के बढ़ते कदम को,
यहीं हैं वह जो बनाते वतन के चमन को,
युवाओं के लिए कुछ नया कर दिखाओ,
इन्हे सँवार कर इन्हें रोजगार दिलाओ,
न काटो इनके पर, झूठे वादे दिखाकर,
कब तक लूटोगे इन्हे बाते बनाकर,
प्रियतम अब चले कहीं ठेला लगा लें,
पकौड़े बेचकर अपने मन को लगा लें,
खाती कसम आपके वचन को ही निभाना,
बाजार जाना तो गर्म पकौड़े ही लाना॥5॥

कविता को बेहतर रूप देने का प्रयास किया है कविता का पूरा आनन्द लेवें। कविता पत्नी व पति के इर्द-गिर्द संवाद के रूप में राजनीति के वृत पर गति करती है। सभी सज्जन आनन्द लेवें। राजनीति से प्रेरित भी कविता नहीं है और भारतीय संस्कृति किसी भी निश्चित पद की ही ठेकेदारी नहीं है। फिर भी किसी सज्जन को ठेस पहुँचे वह क्षमा करें। चाय-पकौड़ा श्रंखला से अभी और भी कविताएँ भी रची जाएगी आनन्द लेवें।

Language: Hindi
306 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
*तुम अगर साथ होते*
*तुम अगर साथ होते*
Shashi kala vyas
अपने आसपास
अपने आसपास "काम करने" वालों की कद्र करना सीखें...
Radhakishan R. Mundhra
छप्पय छंद विधान सउदाहरण
छप्पय छंद विधान सउदाहरण
Subhash Singhai
■ सनातन सत्य...
■ सनातन सत्य...
*Author प्रणय प्रभात*
निर्जन पथ का राही
निर्जन पथ का राही
नवीन जोशी 'नवल'
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
गुस्ल ज़ुबान का करके जब तेरा एहतराम करते हैं।
गुस्ल ज़ुबान का करके जब तेरा एहतराम करते हैं।
Phool gufran
लंगोटिया यारी
लंगोटिया यारी
Sandeep Pande
रमणीय प्रेयसी
रमणीय प्रेयसी
Pratibha Pandey
ख्वाबों में मिलना
ख्वाबों में मिलना
Surinder blackpen
श्रृंगार
श्रृंगार
Neelam Sharma
महकती रात सी है जिंदगी आंखों में निकली जाय।
महकती रात सी है जिंदगी आंखों में निकली जाय।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
“सत्य वचन”
“सत्य वचन”
Sandeep Kumar
3292.*पूर्णिका*
3292.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
💐प्रेम कौतुक-318💐
💐प्रेम कौतुक-318💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
तीजनबाई
तीजनबाई
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
वह एक वस्तु,
वह एक वस्तु,
Shweta Soni
आ ख़्वाब बन के आजा
आ ख़्वाब बन के आजा
Dr fauzia Naseem shad
*फँसे मँझधार में नौका, प्रभो अवतार बन जाना 【हिंदी गजल/ गीतिक
*फँसे मँझधार में नौका, प्रभो अवतार बन जाना 【हिंदी गजल/ गीतिक
Ravi Prakash
क्या हुआ गर नहीं हुआ, पूरा कोई एक सपना
क्या हुआ गर नहीं हुआ, पूरा कोई एक सपना
gurudeenverma198
*मधु मालती*
*मधु मालती*
सुरेश अजगल्ले 'इन्द्र '
क्या मिटायेंगे भला हमको वो मिटाने वाले .
क्या मिटायेंगे भला हमको वो मिटाने वाले .
Shyamsingh Lodhi (Tejpuriya)
*हम विफल लोग है*
*हम विफल लोग है*
पूर्वार्थ
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
छठ पूजा
छठ पूजा
Damini Narayan Singh
लोकशैली में तेवरी
लोकशैली में तेवरी
कवि रमेशराज
मोबाइल महिमा
मोबाइल महिमा
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
कलम बेच दूं , स्याही बेच दूं ,बेच दूं क्या ईमान
कलम बेच दूं , स्याही बेच दूं ,बेच दूं क्या ईमान
कवि दीपक बवेजा
खाने पीने का ध्यान नहीं _ फिर भी कहते बीमार हुए।
खाने पीने का ध्यान नहीं _ फिर भी कहते बीमार हुए।
Rajesh vyas
स्वार्थ से परे !!
स्वार्थ से परे !!
Seema gupta,Alwar
Loading...