प्रत्युत्तर दो काश्मीर में और सेना को फिर शोहरत दो..
जब – जब सेना पर लाचारी का प्रहार पड़ा है…
तब – तब क़लम तूने सेना का सम्मान गढ़ा है…
राजनीति तो अपने मद में मूर्छित पड़ी है…
पर ये क़लम सैनिक के संग ले उम्मीद खड़ी है…
चाणक्य के वंसज को भारत अब भी ढूंढ़ रहा है…
क़लमकार का वंसज मै वाणी में अपनी ओज भरा है…
सेना को अनुच्छेदों के बंधन में उलझाया क्यों…
तुम साथ खड़े हो सेना के या 56 इंच फरमाया क्यों…
उम्मीद मोदी तुमसे भारत को है चाणक्य सी…
प्रत्युत्तर दो काश्मीर में और सेना को फिर शोहरत दो…
✍कुछ पंक्तियाँ मेरी कलम से : अरविन्द दाँगी “विकल”