” पैंजनिया बाजी संतूरी ” !!
उषा अरुणिम ,
कपोल पर बिखरी /
अधर गुलाबी ,
हंसी भी संवरी /
मन उतावला ,हुआ बावला –
गंध फैलती कस्तूरी //
कारे-कारे कुंतल ,
घटा से निखरे /
कांधे जो बिखरे ,
हुए मसखरे /
रूप सजा और आँचर ढरका –
नयनों में चपला बिजुरी //
एक कमान सी ,
देह तनी है /
कटी आकर्षक ,
छवि बनी है /
खजुराहो के चित्र उभरते –
पैंजनिया बाजी संतूरी //
सब भीति-चित्र ,
रंगहीन हो गये /
पल-पल बहके ,
महीन हो गये /
एक समर्पण ,भीगा तन-मन –
यादें मिसरी-मिसरी //