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7 Apr 2021 · 1 min read

पेट की आग

पेट की आग
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पेट की आग न होती, तो कोई धंधा नहीं होता।
आदमी धन औ दौलत के लिए, अंधा नहीं होता।
भुखमरी और लाचारी, कभी पैदा नहीं होती।
गरीबों के गले मे, फाँसी का फंदा नहीं होता।

पेट की आग तक तो ठीक है, सबको बुझानी है।
छीन कर दूसरों के मुँह की रोटी, खुद ही खानी है।
प्रकृति समझा रही उसकी नजर में सब बराबर हैं,
समझ जाओ समय है न अगर समझे नादानी है!

सत्य कुमार ‘प्रेमी’
07 अप्रैल, 2020

Language: Hindi
499 Views
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