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1 Aug 2020 · 1 min read

पूस की रात

माघ पूस की रात कैसे कटे
गर दे दे ये रूपया तू सहना को
तब कैसे खरीदे कम्मल ओढवे को
दे दे मुन्नी तीन रूपया सहना को ।

सुनो बात प्रिय, दे देना फसल पे
ठिठुरे हाड़ लो कम्मल ओढ़वे को
सनसनाती चले ठंडी पछुवा खेत पे
हल्कू ठिठुरे न कम्मल ओढ़वे को ।

पहले प्राण छुटाऊँ देकर तीन रूपया
बाद मैं खरीदूँ मैं कम्मल ओढ़वे को
अलाव जलाए हल्कू जबरा के संग
बीत रही रैन काँप -काँप अंग – अंग।

आहट सुन खेत चरते जानवरों की
जबरा हुआ सतर्क पर हल्कू बे हिम्मत
बर्फीली रात दोनों पड़े है सिकुड़े
फिर खेत देखने की कैसे करे जुर्रत ।

सिकुड़े तारे , सिकुड़ा था परिवेश
बार -बार देखे सोचे कब बीते रैन
लगी आँख हल्कू जबरा को आया चैन
मुन्नी ने आ देखा अन्न विहीन खेत ।

अब करे मजदूरी फसल से मिले न कुछ
रूखी – सूखी खाये तो भी लदे कर्ज
मुन्नी हल्कू कर रहे प्रभु से एक ही अर्ज
आ द्वार खरीखोटी न सुनाए कोई अब ।

Language: Hindi
75 Likes · 4 Comments · 492 Views
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