Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Sep 2016 · 6 min read

पुरुषार्थ और परमार्थ के लिए कंचन बनो (प्रेरक प्रसंग/बोधकथा)

तेजोमय बढ़ी हुई सफेद दाढ़ी से दिव्य लग रहे साधु को देख कर नदी किनारे बैठा वह युवक उठा और साधु को प्रणाम कर जाने लगा।
साधु ने पीछे से युवक को आवाज दी – ‘रुको वत्स।’
युवक रुका और उसने पीछे मुड़ कर देखा। साधु ने कहा- ‘बिना आत्महत्या किये जा रहे हो!!’
युवक चौंक गया। वह सोचने लगा कि साधु को कैसे मालुम हुआ कि वह यहाँ आत्महत्या के कुविचार से आया था। वह कुछ कहता साधु समीप आया और बोला- ‘बेटेे, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है और फिर इस शरीर को नष्ट करने का अधिकार तुम्हें किसने दिया?’
साधु ने उसके कंधे पर हाथ रख मुस्कुरा कर कहा- ‘तुम स्वयं इस लोक में नहीं आये हो, तुम्हें लाया गया है। पता नहीं प्रकृति तुमसे कौनसा अनुपम कार्य करवाना चाहती है? हो सकता है, कोई ऐसा कार्य, जिससे युग परिवर्तन हो जाये। तुम अमर हो जाओ।’
साधु ने उसके कंधे पर दवाब डाला और कहा- ‘मैं तुमसे आत्‍महत्‍या का कारण नहीं पूछूँगा। आओ, चलो मेरे साथ।’
वह मंत्रमुग्ध सा उस साधु के साथ चलने लगा। साधु ने कहा- ‘तुमने अपने शरीर को खत्म करने की अभिलाषा की अर्थात् एक तरह से तुम मर चुके हो, लेकिन भौतिक शरीर से तुम अब भी जीवित हो। अब यह शरीर तुम्हारा नहीं।’
वह युवह कुछ समझ नहीं पा रहा था। वह उस साधु के तेजस्वी आँखों से आँखें नहीं मिला पा रहा था। वह सिर नीचे किये उसके साथ चलता रहा। नदी के समीप के ही अरण्य के रास्ते बढ़ते हुए उस युवक का दिल धड़कने लगा। साधु ने कहा- ‘घबराओ नहीं।’
थोड़े समय तक दोनों चुप रहे और अरण्य में आगे बढ़ते रहे। पल भर के लिए युवक अपने भौतिक संसार को भूल चुका था। रास्ते में सिंह मिला। सिंह ने नतमस्तक हो कर साधु और उस युवक का वंदन किया।
साधु बोला- ‘केसरी, मनुष्य और तुम में कौन सामर्थ्‍यवान है?’
सिंह ने कहा- ‘मुनिवर, योनि में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है, इसलिए सबसे सामर्थ्‍यवान् मनुष्य ही है।’
सिंह को बात करते हुए देख कोतूहल से युवक के मुँह से कुछ नहीं निकल रहा था। वह बस किंकर्तव्यविमूढ़ अपनी दुनिया को भूल वार्तालाप सुन रहा था।
साधु ने पूछा- ‘वह कैसे केहरि?’
सिंह ने कहा- ‘साधुवर, हमारा शरीर बलिष्ठ है, केवल शिकार करने में, डराने में, दहाड़ने में। इस अरण्य में भले ही मैं शक्तिवान् हूँ, किन्तु इस चराचर जगत् में मुझसे भी कई बलिष्ठ हैं, जिनमें से एक मनुष्य है। हम अपनी पूरी सामर्थ्‍य और बल का उपयोग केवल अपनी भूख मिटाने में गँवा देते हैं और मनुष्य अपनी बुद्धि, बल और सामर्थ्‍य से हर कठिनाइयों से जूझता है और सफल होता है। अरण्य में आकर वह मेरे परिवार का शिकार कर ले जाता है। अब आप बताइये वो सामर्थ्‍यवान है या मैं!!’
साधु और वह युवक आगे बढ़े। रास्ते में हाथी मिला। हाथी से भी साधु ने वही प्रश्न किया।
हाथी बोला- ‘मुनिश्रेष्ठ, आप क्यों मेरा परिहास कर रहे हैं?’ मैं तो चींटी तक से आहत हो जाता हूँ। मनुष्य मुझे एक तीक्ष्ण अंकुश से अपने वश में कर लेता है। मेरी पीठ पर बैठ कर मुझसे मनचाहा कार्य करवा लेता है। मैं बस मोटापे से सहानुभूति पा कर अकर्मण्य हो इधर-उधर भटकता रहता हूँ। कुत्ते मेरे पीछे भौंकते रहते हैं। मनुष्य तो मुझे भी वश में कर लेता है। मनुष्य को कोई नहीं पा सकता । वह श्रेष्ठ है।’
वे फिर आगे चले। रंग-बिरंगे बहुत ही सुन्दर पक्षियों का झुण्ड मिला। साधु के प्रश्न पर चहचहाते हुए वे बोले- ‘मनुष्य के आगे हमारी क्या बिसात तपस्वी, हम नन्हीं सी जान तो इनका मनोरंजन करती हैं, हम या तो इस अरण्य में स्वच्छन्द घूम सकते हैं या मनुष्य के घरों में पिंजरों में बंद हो कर संतोष कर लेते हैं और अभी तक तो हम यह समझते थे कि गिद्ध या चील ही सबसे ऊपर आकाश में उड़ सकती हैं या कपोत दूर तक उड़ान भर सकता है, पर हम गलत थे, अब तो मनुष्य न जाने किस पर सवार हो कर पलक छपकते ही जाने कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है!!’ पक्षियों ने एक स्वर में कहा- ‘मनुष्य विलक्षण बुद्धि वाला प्राणी है।‘ पक्षी मुस्कुराकर उन्हें देखते हुए आकाश में खो गये।
आगे उन्हें कुत्ता मिला। कुत्ते ने साधु के उसी प्रश्न के उत्तर में जवाब दिया- ‘मैं कितना भी स्वामिभक्त क्यूँ न हो जाऊँँ, मनुष्य की महानता को मैं क्या कोई नहीं पा सकता। मैंने एक ही बात मनुष्य में हम जंगली प्राणियों से भिन्न पाई है, वह यह कि मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु मनुष्य ही है। हम यहाँ अरण्य के प्राणी सपरिवार सकुटुम्ब शिकार कर एक साथ संताेेष के साथ भोजन करते हैं, किन्तु मनुष्य कभी शान्ति से भोजन नहीं करता। यही कारण कि मनुष्य, मनुष्य का शत्रु बन बैठा है। हमें पालने वाले ये मनुष्य, हमसे जैसा भी बरताव करते हैं, हम कभी विरोध नहीं करते, किन्तु मनुष्य जब से मनुष्य का शत्रु बन बैठा है, तब से धैर्य खो बैठा है। वहाँ मुझे मनुष्य से नहीं, मेरे वंश के लोगों से डर लगता है, मनुष्य ने मेरे ही वंश के न जाने कितनी नई प्रजातियों को जन्म दे दिया है, वे प्रजातियाँ हमारे अरण्य में ही नहीं पाई जातीं। मनुष्य की बुद्धि का कोई पार नहीं।’
आगे नदी के किनारे गीदड़ से युवक को मिलाते हुए साधु ने कहा- ‘अरण्य का यह सबसे चतुर जानवर है। इससे पूछते हैं मनुष्य के बारे में।’
उससे पूछने पर गीदड़ ने कहा- ‘साधुवर, इस संसार में अच्छे बुरे, निर्बल, सबल, धुरंधर, जाँबाज, धैर्यवान सभी प्रकार प्राणी हैं,उनके बीच रहना भी टेढ़ी खीर है, आसान नहीं। मेरे जैसे भी होंगे मनुष्य, जीव जगत् में। मनुष्य को जहाँ तक परखा है महामुनि, वह मेरे जैसों का शिकार नहीं करता, क्यों नहीं करता, मैं नहीं जानता, यहाँ अरण्य में भी मेरे परिवार का कोई शिकार नहीं करता, इसीलिए मैं यहाँ स्वच्छंद घूमता हूँ। मुझे तो बस मनुष्य से ही डर लगता है,क्योंकि शहर में बड़े-बड़े दिग्गजों को मनुष्य के आगे नतमस्तक होते देखा है,इसलिए मैं कभी शहर में नहीं गया। मनुष्य चमत्कारी है। उसको प्रकृति के सिवाय कोई चुनौती नहीं दे सकता।’
इस प्रकार अरण्य मे मिले सभी प्राणियों ने मनुष्य की ही प्रशंसा की। साधु ने समीप ही कल-कल करती नदी के किनारे पाषाण पर बैठ कर कहा- ‘सुनो वत्स, मनुष्य माया मोह में जकड़ा हुआ ऐसा प्राणी बन गया है कि वह इस दलदल से जब तक नहीं निकलेगा, वह चैन से नहीं जी सकता। और यह सम्भव नहीं लगता। इसी कारण वह धीरे-धीरे संस्कार भूलता जा रहा है, अपने परिवार को संस्कारी नहीं बना पा रहा। उसी का परिणाम है कि तुम जैसे न जाने कितने लोग बिना सोचे समझे आत्महत्या का निर्णय ले लेते हैं और मनुष्य जाति ही नहीं अन्य प्राणियों के लिए भी वह एक कौतूहल का विषय बन बैठा है। वन्य प्राणी भी इसी लिए मनुष्य से डरने लगे हैं। शहरों में इन वन्य प्राणियों से जैसा बरताव हो रहा है, अच्छे मनुष्य उन्हे वापिस अरण्य में ले जाकर छोड़ने लगे हैं।’
साधु ने युवक के कन्धे पर हाथ रख कर कहा- ‘मनुष्य को महत्वाकांक्षा ने अनासक्ति भाव से रहना ही भुला दिया है। यह कार्य अब तुम्हें करना है। तुम्हें आज से दूसरों के हित के लिए नया मार्ग प्रशस्त करना है। पुरषार्थ और परमार्थ से अपने जीवन को तपाना है, क्योंकि तुम्हें तो अमर होना है। मरना होता तो तुम अब तक अपना भौतिक शरीर त्याग चुके होते, आत्महत्या कर चुके होते। इसलिए अब आगे बढ़ो और नये युग का सूत्रपात करो। तुम्हें इस संसार में शेरदिल इंसान मिलेंगे, अनेक हस्तियाँ मिलेंगी, सुंदरता मिलेगी, कुत्तों जैसे वफादार और गीदड़ जैसे चाटुकार मिलेंगे। अजगर वृत्ति वाले आलसी लोग मिलेंगे,दो गले और दो जीभ वाले सर्प की प्रकृति वाले जहरीले मनुष्य भी मिल सकते हैं, समय पर रंग बदलने वाले गिरगिट जैसी प्रवृत्ति वाले भी मिलेंगे,आँखें फेरने वाले तोताचश्म भी तुम्हारे जीवन में आएँगे। तुम्हें इन सब को पहले परखना होगा और अपना रास्ता ढूँढ़ना होगा।’
साधु ने उठते हुए अंत में कहा- ‘अब मैं बताता हूँ कि मनुष्य सबसे श्रेष्ठ क्यों है। मनुष्य सर्वश्रेष्ठ इसलिए है अरण्य के सभी प्राणियों में अपनी-अपनी प्रकृति है, किन्तु अरण्य के सभी प्राणियों की प्रकृति अकेले मनुष्य में हैं। अपनी-अपनी प्रकृति और गुण के कारण अरण्य के प्राणियों का रूप, स्वरूप आकार-प्रकार अलग-अलग है, किन्तु दुनिया के सभी प्राणियों की प्रकृति वाले मनुष्य का स्वरूप आज तक नहीं बदला।’
उसे शहर की ओर का मार्ग दिखाते हुए कहा साधु ने कहा- ‘जाओ निकल जाओ परमार्थ के यज्ञ को करने और जब भी तुम अपने आप को उद्विग्न पाओ तो इस वन में चले आना, इन प्राणियों ने तुम्हें मेरे साथ देखा है। मनुष्य तुम्हें भूल सकता है, ये प्राणी तुम्हें कभी नहीं भूलेंगे।’
साधु भी युवक की विपरीत दिशा में आगे बढ़ गये। वे जाते-जाते कहते गये – ‘जाओ, पीछे मुड़ कर मत देखना। इस शरीर को तुम अब पुरुषार्थ और परमार्थ के लिए कंचन बनाओ।’

-0-

Language: Hindi
701 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
चुनाव का मौसम
चुनाव का मौसम
Dr. Pradeep Kumar Sharma
जय अयोध्या धाम की
जय अयोध्या धाम की
Arvind trivedi
अन्ना जी के प्रोडक्ट्स की चर्चा,अब हो रही है गली-गली
अन्ना जी के प्रोडक्ट्स की चर्चा,अब हो रही है गली-गली
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
सलीन पर लटके मानवता के मसीहा जीसस के स्वागत में अभिव्यक्ति 
सलीन पर लटके मानवता के मसीहा जीसस के स्वागत में अभिव्यक्ति 
Dr. Girish Chandra Agarwal
गीत प्यार के ही गाता रहूं ।
गीत प्यार के ही गाता रहूं ।
Rajesh vyas
2552.*पूर्णिका**कामयाबी का स्वाद चखो*
2552.*पूर्णिका**कामयाबी का स्वाद चखो*
Dr.Khedu Bharti
तुम्हारी याद है और उम्र भर की शाम बाकी है,
तुम्हारी याद है और उम्र भर की शाम बाकी है,
Ankur Rawat
प्यार है तो सब है
प्यार है तो सब है
Shekhar Chandra Mitra
हाँ, कल तक तू मेरा सपना थी
हाँ, कल तक तू मेरा सपना थी
gurudeenverma198
ये नयी सभ्यता हमारी है
ये नयी सभ्यता हमारी है
Shweta Soni
चंद्रयान 3
चंद्रयान 3
Dr Archana Gupta
सत्तावन की क्रांति का ‘ एक और मंगल पांडेय ’
सत्तावन की क्रांति का ‘ एक और मंगल पांडेय ’
कवि रमेशराज
"आज के दौर में"
Dr. Kishan tandon kranti
तिलक-विआह के तेलउँस खाना
तिलक-विआह के तेलउँस खाना
आकाश महेशपुरी
हंसी आ रही है मुझे,अब खुद की बेबसी पर
हंसी आ रही है मुझे,अब खुद की बेबसी पर
Pramila sultan
शायरी - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
शायरी - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
Sundeep Thakur
बचा ले मुझे🙏🙏
बचा ले मुझे🙏🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
मां
मां
goutam shaw
2 जून की रोटी की खातिर जवानी भर मेहनत करता इंसान फिर बुढ़ापे
2 जून की रोटी की खातिर जवानी भर मेहनत करता इंसान फिर बुढ़ापे
Harminder Kaur
सापटी
सापटी
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
विश्वास का धागा
विश्वास का धागा
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
कारण मेरा भोलापन
कारण मेरा भोलापन
Satish Srijan
💐प्रेम कौतुक-302💐
💐प्रेम कौतुक-302💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
ऐ!मेरी बेटी
ऐ!मेरी बेटी
लक्ष्मी सिंह
"Teri kaamyaabi par tareef, tere koshish par taana hoga,
कवि दीपक बवेजा
🙅आदिपुरुष🙅
🙅आदिपुरुष🙅
*Author प्रणय प्रभात*
कुछ रिश्ते भी बंजर ज़मीन की तरह हो जाते है
कुछ रिश्ते भी बंजर ज़मीन की तरह हो जाते है
पूर्वार्थ
सत्य दृष्टि (कविता)
सत्य दृष्टि (कविता)
Dr. Narendra Valmiki
पुण्यात्मा के हाथ भी, हो जाते हैं पाप ।
पुण्यात्मा के हाथ भी, हो जाते हैं पाप ।
डॉ.सीमा अग्रवाल
*जिंदगी-भर फिर न यह, अनमोल पूँजी पाएँगे【 गीतिका】*
*जिंदगी-भर फिर न यह, अनमोल पूँजी पाएँगे【 गीतिका】*
Ravi Prakash
Loading...