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25 Jun 2016 · 2 min read

पीपल का पत्ता

!!!!~~~~~~~~~~ पीपल का पत्ता ~~~~~~~~~~!!!!
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पीपल का पत्ता, जब गुलाबी कोपलों की नर्म खिड़कियों से बाहर झाँकते हुए प्राकृतिक परिवेश में अठखेलियाँ करने लगता है तब उसे ज्ञात नहीं होता क़ि उसकी उमंग का इक सीमित दायरा भी पूर्वनिश्चित हैं| ऋतुपरिवर्तन के साथ ही साथ उसके रंग, आकार व कान्ति में भी परिवर्तन देख़ने को मिलता है| जीवन के अवसान में उसकी अपनी ही डालियाँ उससे विरक्ति लेनें क़ो इसक़दर उद्यत हो जाती हैं कि वह निर्बल हो पीतवर्ण में परिवर्तित हो जाता है व स्वयं को पुनः सम्हाल पाने मे असक्षम प्रतीत करते हुए भूमि पर आ गिरता है|

हवा के झोंके मानो उसकी ही बॉंट जोह रहे हों| वे उसे पलभर में उड़ा ले जाते हैं| जबतक कि वह कुछ समझ पाता उसके पूर्व ही ख़ुद को शितल जलधार में बहता पाता हैं। लहरें, उसके दुखों को स्वयं में समेट लेना चाहती हैं पर उसका जीर्ण अस्तीत्व भारहीन हो चुका है| अब वह उड़ सकता है बह सकता है पऱ डूब नहीं सकता।

किनारे भी उसे छूना चाहते हैं पर लहरों की थपेड़ों से डरे हुए हैँ| इस बात का लहरों को भी रंज है पर अपनी असभ्य आचरण में सिमटकर वह पत्ते का अहित नही करना चाहती| प्रायश्चितस्वरुप पत्ते को, किनारों को सुपुर्द किये देती हैं| किनारे जज़्बाती तो हैं पर प्राक़ृतिक नियमोँ को चुनौती देना उन्हें स्वीकार्य नहीं।

आखिरकार पत्ता अंत सुनिश्चित समझकर किनारो की दहलीज़ पर ही निज आकार से निराकार में परिणित होने का साहस जुटा लेता हैं। इन संघर्षों ने उसे रंगहीन व द्य्रुतिहीन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा। शनै:-शनै: वह पूर्णतः छलनी हों चुका होता हैं पर इस नए रुप मेँ प्राक़ृतिक कलाकारी द्वारा उकेरा हुआ सर्वोत्कृष्ट आकृति बन चूका होता है!

अजब दस्तूर है दुनिया का कभी जिसे ख़ुद की ही शाख़ों नें ठुकरा दिया था किताबों के नर्म पन्नों में मिली पनाह ने उसे उम्दा अस्तीत्व सह स्वामित्व का आभासबोध करा दिया है! आज भी पीपल का वह पत्ता मृत्यु के पाशविक चक्रव्यूह से उबरकर लोगों में मौन अस्थिर व अपरिमित प्रेरणाश्रोत बना हुआ है!!”_____दुर्गेश वर्मा (१३/०७/२०१४)

Language: Hindi
2 Comments · 584 Views
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