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8 Nov 2018 · 1 min read

पारसमणी मंत्र है मां

मेरी तेरी सबकी मां,
विविध रूप पर एक है मां।
अभिव्यक्ति की प्रथम किरण,
सृष्टि की आधार है मां।
सुबह ‌है ऊषा शाम की संध्या,
चढ़त दुपहरी रात भी मां।
स्वयं विधाता ने माना,
आदिशक्ति स्वरूपा मां।
मां ही शक्ति मां ही भक्ति,
प्रकृति के कण कण में मां।
उदर सेज सहेज सहेज,
नवजीवन देती है मां।
नवसृजन हित संतति जनती,
प्रसव वेदना सहती मां।
अमृतोपम पयपान करा,
पालन पोषण करती मां।
ममतामयी वात्सल्य स्वरूपा,
देवों की भी देव है मां।
मां शब्द की महिमा अनन्त,
पारसमणी मंत्र है मां।

राजेश कौरव “सुमित्र”
गाडरवारा

13 Likes · 32 Comments · 897 Views
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