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4 Oct 2017 · 1 min read

पडिंत रावण सा नही

पडिंत रावण सा नही, हुआ और विद्वान !
ले डूबा उसको मगर, उसका ही अभिमान!!

सच्चाई के सामने ,……. गई बुराई हार !
मिले दशहरा से यही, हमें सीख हर बार !!

मन में भीतर का अगर, दिया न रावण मार !
पुतले का करके दहन, नही निकलता सार !!

काम क्रोध मद लोभ सह, त्यागें दुर्गुण सर्व!
होय सफल रावण दहन, व्यर्थ अन्यथा पर्व।!

उस रावण का कीजिये, पहले काम तमाम !
वो जो भीतर बैठ कर,…करे कुकर्मी काम !!

रावण जैसों का अगर,हार गया अभिमान !
करना तेरा व्यर्थ है,…फिर तो मित्र गुमान! !
रमेश शर्मा

Language: Hindi
2 Likes · 706 Views
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