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25 Dec 2016 · 1 min read

नोट-बंदी

हर तरह से हर गति अब आज मंदी हो गई ।
जब से मेरे देश में ये , नोट-बंदी हो गई ।

मिट्टी के भाव से बिकता है किसानों का अनाज ,
निर्धनों के घर में ज्यादा और तंगी हो गई ।

बैंक की लाइन में अब भी भीड़ केवल निर्धनों की,
घर बैठे ही बड़ों-बड़ों की नयी करेंसी हो गई ।

वेईमानी करने का मौका हमें पहले नहीं था ,
नोट-बंदी की कृपा से अपनी चाँदी हो गई ।

श्वेत ने काले को बिल्कुल दूधिया-सा कर दिया,
बैंक बालों की चुनरिया आज धानी हो गई ।

बैंक का यह सिलसिला बदस्तूर जारी है अब भी,
पतिव्रता कहते थे जिसको, आज रंडी हो गई ।

दम नहीं ‘ईश्वर’ यहाँ पर शेर की भी गर्जना में ,
अब व्यवस्था गीदड़ों की चाल- मंडी हो गई ।

ईश्वर दयाल गोस्वामी ।
कवि एवम् शिक्षक ।

5 Likes · 12 Comments · 1590 Views
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