” ——————————————निखरी हुई हया है ” !!
मस्त पवन ,बौराई खुशबू , किसको होंश यहां है !
मौसम के रंग डूबे हम तो , अँखियाँ करें बयां है !!
तन मन हुआ गुलबिया ऐसा , खुद गुलाब शरमाये !
आज हुआ है अनुभव सच में , बिल्कुल नया नया है !!
बागों की हरियाली जैसे , हरे भरे हैं सपने !
लाज कपोलों पर बिखरी है , निखरी हुई हया है !!
इंतज़ार में पलक पाँवड़े , हमने आज बिछाये !
अपने हाथों ही दिल अपना , लगता आज गया है !!
कोई देखे और कहे क्या , इसका भान कहाँ है !
अपने ही में खोये खोये , मनवा भटक गया है !!
आज सुहाना सा लगता है , कल भी यही चहेगें !
वक़्त मेहरबां ऐसा ही हो , प्यार तो एक दरिया है !!
बृज व्यास