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10 Sep 2019 · 3 min read

नवोदय और नवोदियन

नवोदय विद्यालय है भारत की शान
मेरा नवोदय विद्यालय है बहुत महान
राजीव गांधी ने देखा था एक सपना
हर वर्ग क्षेत्र स्तर का बच्चा है अपना
सर्वांगीण विकास करना है जिनका
नव उदय नवोदय से पूरा होगा सपना
नवोदय विद्यालय योजना क्रियान्वयन
मेरा नवोदय विद्यालय है बहुत महान
पंचम कक्षा का था मैं नन्हा विद्यार्थी
परीक्षा पासकर बना नवोदय शिक्षार्थी
प्रथम कदम प्रवेश कर चरम उत्साह
हर्षित पुल्कित गौरवान्वित था अथाह
अभिभावक विदा कर मैं आया नादान
अकेला हुआ फिर हुआ हैरान परेशान
सहपाठियों से हुई फिर जान पहचान
गले लगाकर किया हमनें मान सम्मान
शाम ढली रात हुई मन विचलित अपार
तीव्र धड़कन आँखों में थे आँसू बेशुमार
माँ बाप घरवाले संगी साथी आए याद
रोते रातें संभलते संभालते घबराहट में
कटी मुश्किल से प्रथम तारों भरी रात
साथ खाते पीते सोते पढते खेलते छेड़ते
सहपाठी से बन गए थे घनिष्ठ हमजोली
परस्पर भाई बहन मित्र संगी रिश्ते नाती
शिक्षक थे अभिभावक मात पिता साईं
शिक्षकों को हम से मान सम्मान मिला
बदले में हमको खूब प्यार दुलार मिला
कतार में जाना अनुशासन में सदा रहना
लड़ना झगड़ना रूठना मनाना चिढाना
उसी पल जैसे थे वैसे ही हो खाना पीना
मस्ती करना मौजें करना पढना लिखना
शरारतें करना मूर्ख बनाना और बन जाना
सच्ची बहुत अच्छा लगता था बाल याराना
बीच अधर में नहाते वक्त पानी चले जाना
आँखों में साबुन लिए भागते ठोकर खाना
खेल खेल मे गुत्थमगुत्था और भिड़ जाना
हाऊसों में बंटकर प्रतियोगी बन भिड़ना
खेलकूद हो या सांस्कृतिक वाद विवाद
अच्छे से तैयारी करते होता खूब संवाद
महीने में वो फिर एक निश्चित दिन आता
माता पिता भाई बहन इंतजार बेसब्री रहता
घर से आई खास मिठाई मिल बांट खाते
कई बार ट्रंकों के ताले और कुंडे टूट जाते
नालो में पड़ी चाबियां यूंही धरी रह जाती
शरारती चालूपंथी तत्व लुत्फ मौज उड़ाते
दीवाली पर मिले चार मूर्गाछापी बंब चलाते
जन्माष्टमी पर वर्ती व्रत चरती मौज उडा़ते
रंगमंच पर गीत संगीत नृत्य का लुत्फ उठाते
शनिवार रविवार की फिल्म का आनंद लेते
बुधवार शुक्रवार चित्रहार चित्रमाला देखते
साल में रक्षाबंधन का दिन मनहूस आता
जिस पर नजरें होती उसी से राखी बंधती
करी कराई मेहनत पर यूं मिट्टी पड़ जाती
लड़के लड़कियों से राखी बंधवाने से बचते
आपस में भैया दीदी ट्रेंड मन को अखरते
होली पर मिले सौ ग्राम रंग में खूब रंगते
काला तेल कीचड़ से सनै चेहरे बिगड़ते
पढते बढते एक दिन जुदाई का भी आया
कुछ साथी दूसरे प्रदेश गए और कुछ आए
उस दिन भी लिपट कर गले मिल खूब रोए
समय बीता बालक से हम किशोर बन गए
दाढी मूँछ शारीरिक मानसिक परिवर्तन हुए
विपरीत लिंग आकर्षक खेली आँख मिचौनी
पर कभी नहीं मिल पाए हम दिल के जानी
यारो के हम यार बने और दुश्मन के दुश्मन
उत्तम कद काठी सुन्दर छैल छबीले जवान
लड़कियाँ सुन्दर सुशील शालीन संस्कारी
उच्चकोटि की विचारधारा और शिष्टाचारी
समय का पहिया चला पता न चल पाया
बीज जो बोया था अंकुरित हो पेड़ बन गया
नवोदय कहता हो तुम करो अब अगली तैयारी
कुछ बन कर आओ यहाँ मुझे इंतजार तुम्हारी
आ गई थीं यारो यहां नवोदय की अंतिम बेला
यारो रो कर बिछड़ रहा था गुरु का हर चेला
हम सभी बेसुध बेजान मुर्छावस्था में मुर्छित
काटो तो खून नहीं जैसी थी बन गई स्थिति
रो रो कर गले लगाकर हमने ले ली विदाई
कुछ बनकर ही मिलेंगे थी संग कसमें खाई
आज हमारा प्रतिनिधित्व हर स्थान.पर यारो
देश विदेश शिक्षा रक्षा स्वास्थ्य हर जगह यारों
हमें प्रफुल्लित देख नवोदय फूला न समाता
हम हैं सदैव नवोदय ऋणी न ऋण चुकाता
जय नवोदय जय नवोदियन

सुखविंद्र सिंह मनसीरत

Language: Hindi
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