Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
13 Jul 2016 · 3 min read

नदी के दो किनारे (लघु कथा)

जीवन संध्या में दोनों एक दूसरे के लिए नदी की धारा
थे। जब एक बिस्तर में जिन्दगी की सांसे गिनता है तो दूसरा उसको
सम्बल प्रदान करता है, जीवन की आस दिलाता है।
दोनों जानते थे
कि जीवन का अन्त निश्चित है, फिर भी जीवन की चाह दोनों में
है। होती भी क्यों न हो, जीवन के आरम्भ से दोनों के लिए
एक मित्र, सहपाठी और जीवनसाथी एवं बहुत कुछ थे।
बचपन में एक
दूसरे के साथ खेलना, आँख मिचौली खेलना, हाथ में हाथ
लेकर दौड़ लगाना आदि खेलों ने जीवन में खूब आनन्द
घोला। धूप-छाँव की तरह साथ-साथ समय बिताते थे। माँ
चिल्लाती कहाँ गया छोरे! तो रामू चिल्ला जवाब देता था आया
माँ! फिर अन्तराल पश्चात माँ ने आकर देखा कि रामू और उसकी
बालिका सहचारी सीतू आम की बड़ी डाली पर बैठे-बैठे आम
खाते-खाते बतिया रहे हैं, फुदकते हुए नज़र आते हैं।
स्कूली दिनों में बस्ता लादकर दोनों भाग रहे होते
थे। सीतू जब भागते हुए थक जाती थी तो रामू उसका बस्ता ले
हाथ पकड़ उसे अपने साथ दौड़ा रहा होता था। तभी से सीतू
के लिए वह जीवन साथी, पति परमेश्वर सब कुछ था। एकबार सीतू ने रोते
हुए कहा-हाथ पकड़कर जो तुम स्कूल ले जाते हो, इसे ऐसे ही
पकड़े रहना कह कर सीतू राम की छाती से लिपट उसके कपोल पर चुम्बन
लेती लिपट भावविभोर हो गयी। रामू के गम्भीर चेहरे पर बस एक
स्वीकारोक्ति होती थी। होती भी क्यों न रामू प्यार करने
लगा था। उसे अपनी अर्द्धागिंनी मानने लगा था।जवानी
उनमे घर करने लगी थी।
तो जमाने की दीवार बीच में थी, समाज
में स्वीकार न था उसका रिश्ता पर जहाँ चाह होती है वहाँ राह
होती है। दोनों ने भागकर ब्याह किया और घर छोड़ दिया।
उतार-चढ़ाव आए मगर दोनों ने एक-दूसरे का हाथ कसकर जो
पकड़ रखा था।
रामू दिन भर मालिक के यहाँ रहता वहीं खाता बना हिसाब लगाता था तो सीतू घर का सारा काम करती थी,शाम घर के चौक पर
बैठी रामू के आने की राह तका करती थी, कितना स्नेह था उसके
तकने में जो आज भी दोनों को स्थिर रूप से बाँधे था।
आज जब रामू निसहाय बिस्तर में था, याद कर रहा है सीतू उसके
पास समीप बैठी उसको अपने आँचल का सम्बल प्रदान कर रही है और
रामू एक टक लेटा जैसा आकाश के तारे गिन रहा हो। शरीर साथ
नहीं दे रहा था, साँसे उखड़ रही थी, देखते-देखते कुछ भी
शेष न रहेगा। ऐसा लग रहा था सीतू को। सीतू के पास अब और
कोई जीवन जीने का सहारा न था केवल रामू के। अतः सीतू यह
सोचकर की राम ठीक हो जाए हर सम्भव प्रयास कर रही थी, नीम हकीम से
लेकर डॉक्टर्स के घर तक दस्तक दे, मन्दिर, मस्ज़िदों में माथा
टेक आयी थी, संसार भी कितना निष्ठुर है। एक के रूठने पर दूसरा
स्वयं रूठ जाता है, लेकिन सीतू की निष्ठा पति परायणता एवं पत्नी धर्म
ने इस निष्ठुरता पर विजय पा ली थी।
सीतू और राजू एक
नदी के किनारे थे फिर से एक दूसरे के साथ थे।
सीतू को एक स्त्रियोंचित्त लक्षण प्रदान करने की कोशिश
थी, माँ कहती थी खाना अच्छा बनाना पड़ोसी ज़मीदार और
उनका बेटा तेरा रिश्ता जोड़ने आने को हैं। साड़ी उल्टे
पल्ले की पहन खाना अच्छा खिलाना। सीतू को ये बातें माँ की एक कटोक्ति मात्र लगती थी। रामू जो उसका हो चुका था। प्रेम भी
अजीब चीज है वह राजू की चुम्बनें लेती ऐसी प्रेम डोर में
बंधी चली जा रही थी। जिसका कोई छोर न था।
सीतू और रामू आलिंगनबद्ध थे ।एक दूसरे का स्पर्श करते हुए भावविह्वल है। देखकर ऐसा लगता था
मानो खुदा ने प्रेम को इन्हीं दोनों के रूप में जीवित रखा
है।

डॉ० मधु त्रिवेदी
प्राचार्य
शान्ति निकेतन कॉलेज ऑफ बिज़नेस
मैनेजमेन्ट एण्ड कम्प्यूटर साइन्स आगरा।

Language: Hindi
73 Likes · 5 Comments · 776 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from DR.MDHU TRIVEDI
View all
You may also like:
तुम मुझे बना लो
तुम मुझे बना लो
श्याम सिंह बिष्ट
शीर्षक तेरी रुप
शीर्षक तेरी रुप
Neeraj Agarwal
उलझा रिश्ता
उलझा रिश्ता
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
🌸🌺उन्होंने इश्क़ की क़ीमत तय कर दी🌺🌸
🌸🌺उन्होंने इश्क़ की क़ीमत तय कर दी🌺🌸
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
बहुत दिनों के बाद दिल को फिर सुकून मिला।
बहुत दिनों के बाद दिल को फिर सुकून मिला।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
फागुन का बस नाम है, असली चैत महान (कुंडलिया)
फागुन का बस नाम है, असली चैत महान (कुंडलिया)
Ravi Prakash
कृष्ण भक्ति
कृष्ण भक्ति
लक्ष्मी सिंह
कितने घर ख़ाक हो गये, तुमने
कितने घर ख़ाक हो गये, तुमने
Anis Shah
मैं चाँद पर गया
मैं चाँद पर गया
Satish Srijan
किसी मुस्क़ान की ख़ातिर ज़माना भूल जाते हैं
किसी मुस्क़ान की ख़ातिर ज़माना भूल जाते हैं
आर.एस. 'प्रीतम'
■ आज का शेर...
■ आज का शेर...
*Author प्रणय प्रभात*
मन में सदैव अपने
मन में सदैव अपने
Dr fauzia Naseem shad
सत्य की खोज में।
सत्य की खोज में।
Taj Mohammad
कहमुकरी
कहमुकरी
डॉ.सीमा अग्रवाल
कुछ बातें पुरानी
कुछ बातें पुरानी
PRATIK JANGID
তার চেয়ে বেশি
তার চেয়ে বেশি
Otteri Selvakumar
प्यार का रिश्ता
प्यार का रिश्ता
Surinder blackpen
जिंदगी की ऐसी ही बनती है, दास्तां एक यादगार
जिंदगी की ऐसी ही बनती है, दास्तां एक यादगार
gurudeenverma198
संसार है मतलब का
संसार है मतलब का
अरशद रसूल बदायूंनी
मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
कोई आयत सुनाओ सब्र की क़ुरान से,
कोई आयत सुनाओ सब्र की क़ुरान से,
Vishal babu (vishu)
"कहाँ छुपोगे?"
Dr. Kishan tandon kranti
वो बीते हर लम्हें याद रखना जरुरी नही
वो बीते हर लम्हें याद रखना जरुरी नही
'अशांत' शेखर
रंजीत कुमार शुक्ल
रंजीत कुमार शुक्ल
Ranjeet kumar Shukla
दोहे- चरित्र
दोहे- चरित्र
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
भ्रष्टाचार ने बदल डाला
भ्रष्टाचार ने बदल डाला
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
उतर गया प्रज्ञान चांद पर, भारत का मान बढ़ाया
उतर गया प्रज्ञान चांद पर, भारत का मान बढ़ाया
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
कुंडलिया छंद की विकास यात्रा
कुंडलिया छंद की विकास यात्रा
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
शब्द : दो
शब्द : दो
abhishek rajak
नज़र बूरी नही, नजरअंदाज थी
नज़र बूरी नही, नजरअंदाज थी
संजय कुमार संजू
Loading...