Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 May 2020 · 3 min read

दिल की बातें….

मैंने सोचा था,इन सारी बातों को कभी ख़ुद पर तो हावी होने ही नहीं दूँगी,तो आप सबके साथ साझा करना तो दूर की बात है। पर मैंने अपने आप से ये भी वादा किया था कि कुछ भी छुपाऊँगी नहीं।जो मेरे मन में,हृदय में,दिमाग में होगा,उन सारी अभव्यक्तियों को कलमबद्ध करने में ज़रा भी वक़्त नहीं लूँगी, क्योंकि जो मेरे मन में आता है,मुझे लगता है, जितना जल्दी हो सके उसे व्यक्त कर दूँ,तो मेरे मन का बोझ हल्का हो जाए। वैसे मैं हूँ, बहुत अंतर्मुखी स्वभाव की,जब तक मैं न चाहूँ, मेरे मष्तिष्क में किसी भी प्रकार की बातें या फ़िर कुछ भी ऐसा,जो मैं नहीं चाहती कि उसके बारे में सोचूँ,आ नहीं सकता। पर कभी – कभी पता नहीं क्यों हम उस चीज़ या बात को सोचने पर विवश हो जाते हैं, कुछ ऐसा ही फ़िलहाल मेरे साथ हो रहा है। मैं ये भी जनती हूँ कि अभी जो हमारा समय है, हमारी उम्र है, वो अपने लक्ष्य को हासिल करने की है।अपनी उम्मीदों को पूरी करने की है।अपने भविष्य को संवारने की है। जीवन के इस अति महत्वपूर्ण एवं उत्साह भरे मार्ग पर हमें बड़े ही संभलकर चलने की ज़रूरत है, हमारे द्वारा उठाया गया एक भी ग़लत क़दम हमें गिराने के लिए पर्याप्त हैं। ये सारी भावनाएं तो आती और जाती रहेंगी,किंतु हमें लक्ष्य प्राप्ति का अवसर बार – बार नहीं मिलेगा।ये यौवन अवस्था का उम्र होता ही ऐसा है,हमारे लक्ष्य के मार्ग में बहुत सारी बाधाएँ उत्पन्न करता है,परंतु जीत वही जाता है,जिसने अपनी इंद्रियों को वश में कर रखा है, जिसने अपने हर अंतर्मन की बातों को किसी से भी साझा नहीं किया। मैं ठीक इसी प्रकार की हूँ, अब तक मैंने सबकुछ अपने वश में रखा,अपनी अभव्यक्तियों को ऐसे ही कहीं भी उजागर होने नहीं दिया,क्योंकि मुझे पता है कि मेरा अपना आत्मसम्मान है, अपनी आत्मरक्षा है,जो पूरी तरह से केवल और केवल मेरे ही हाथों में है,और जो मुझे बहुत प्यारी भी है। ये इतनी कीमती हैं कि इसके समक्ष सब तुच्छ हैं।किंतु हम इस सच्चाई से भी मूँह नहीं मोड़ सकते कि ये अवस्था उस वक्त का भी है,जब हमारे पाँव एक न एक बार तो अवश्य लड़खड़ाते हैं। पता नहीं क्यों होता है इस तरह,क्यों नहीं ये सारी बातें हमें हमारे कार्य में संलग्न छोड़ देता है।पर ये भी बात है कि फिर हमारे धैर्य,संयम की परीक्षा कैसे होगी,कि हमने क्या कुछ खोकर या पाकर इस मंज़िल को प्राप्त किया है। इस फल में जो आनंद होगा,वो सर्वथा ऊपर होगा,फिर वह मोह रहित हो जाएगा,उसे किसी भी प्रकार का कोई बंधन रोक नहीं पाएगा। मैं आपसे झूठ नहीं बोलूँगी,कभी – कभी इस तरह की परिश्थितियाँ मेरे सामने भी आयीं हैं। एक बार नहीं बहुत बार,लेकिन मैंने बार – बार उसका मुक़ाबला बड़े ही धैर्य एवं साहस के साथ किया है, पर आगे कब तक कर पाऊँगी,पता नहीं। पर मुझे उम्मीद है,ख़ुद पर भरोसा है कि मैं कर सकती हूँ, और कर भी लूँगी।बस मेरा नियंत्रण सदैव मुझपर बना रहे।अगर आपके जीवन में किसी का प्रवेश होता भी है, जिससे आपको कोई आपत्ति नहीं,तो भी आपको इस बात का ख़्याल जरूर रखना चाहिए कि आप एक दायरें में रहें उसे पार ना करें।हर काम सही समय पर ही शोभमान है। अगर कोई भी कार्य बेसमय की जाए तो उसका रस,आंनद एवं मिठास सब समाप्त हो सकता है।अतः नियत्रंण तो नितांत आवश्यक हैं ही, साथ ही कुछ इच्छाओं की पूर्ति भी समय की माँग बन जाती है। सभी अपना – अपना स्वमं देख लें कि उन्हें क्या और कब करना है।

धन्यवाद!
सोनी सिंह

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 2 Comments · 510 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मेरे वतन मेरे वतन
मेरे वतन मेरे वतन
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
No battles
No battles
Dhriti Mishra
हरा नहीं रहता
हरा नहीं रहता
Dr fauzia Naseem shad
भय आपको सत्य से दूर करता है, चाहे वो स्वयं से ही भय क्यों न
भय आपको सत्य से दूर करता है, चाहे वो स्वयं से ही भय क्यों न
Ravikesh Jha
बसंत
बसंत
Bodhisatva kastooriya
-जीना यूं
-जीना यूं
Seema gupta,Alwar
“पतंग की डोर”
“पतंग की डोर”
DrLakshman Jha Parimal
पाँच सितारा, डूबा तारा
पाँच सितारा, डूबा तारा
Manju Singh
कोई अपनों को उठाने में लगा है दिन रात
कोई अपनों को उठाने में लगा है दिन रात
Shivkumar Bilagrami
नज़्म - झरोखे से आवाज
नज़्म - झरोखे से आवाज
रोहताश वर्मा 'मुसाफिर'
मैं अपना गाँव छोड़कर शहर आया हूँ
मैं अपना गाँव छोड़कर शहर आया हूँ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
बेचारा जमीर ( रूह की मौत )
बेचारा जमीर ( रूह की मौत )
ओनिका सेतिया 'अनु '
बड़ी मुश्किल है
बड़ी मुश्किल है
Basant Bhagawan Roy
बेटियां ज़ख्म सह नही पाती
बेटियां ज़ख्म सह नही पाती
Swara Kumari arya
आज कुछ अजनबी सा अपना वजूद लगता हैं,
आज कुछ अजनबी सा अपना वजूद लगता हैं,
Jay Dewangan
*****हॄदय में राम*****
*****हॄदय में राम*****
Kavita Chouhan
आंखों में
आंखों में
Surinder blackpen
❤️सिर्फ़ तुझे ही पाया है❤️
❤️सिर्फ़ तुझे ही पाया है❤️
Srishty Bansal
नश्वर संसार
नश्वर संसार
Shyam Sundar Subramanian
पति पत्नि की नोक झोंक व प्यार (हास्य व्यंग)
पति पत्नि की नोक झोंक व प्यार (हास्य व्यंग)
Ram Krishan Rastogi
👤
👤"जिसका स्थिरता और विश्वसनीयता
*Author प्रणय प्रभात*
ये  भी  क्या  कमाल  हो  गया
ये भी क्या कमाल हो गया
shabina. Naaz
बुंदेली दोहा- गरे गौ (भाग-1)
बुंदेली दोहा- गरे गौ (भाग-1)
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
युवा दिवस
युवा दिवस
Tushar Jagawat
(5) नैसर्गिक अभीप्सा --( बाँध लो फिर कुन्तलों में आज मेरी सूक्ष्म सत्ता )
(5) नैसर्गिक अभीप्सा --( बाँध लो फिर कुन्तलों में आज मेरी सूक्ष्म सत्ता )
Kishore Nigam
रंगीन हुए जा रहे हैं
रंगीन हुए जा रहे हैं
हिमांशु Kulshrestha
खांचे में बंट गए हैं अपराधी
खांचे में बंट गए हैं अपराधी
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
Ajj fir ek bar tum mera yuhi intazar karna,
Ajj fir ek bar tum mera yuhi intazar karna,
Sakshi Tripathi
छलनी- छलनी जिसका सीना
छलनी- छलनी जिसका सीना
लक्ष्मी सिंह
रामबाण
रामबाण
Pratibha Pandey
Loading...