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16 Jun 2020 · 1 min read

दास

बैठे भूतल पर सदा,
तजि आसन की आस।
उदासीन को जगत में,
कौन बनावे दास।

बनते कभी न दास,
हृदय सुख- दुख से रीते।
पतझर या मधुमास,
एकसम उनके बीते।

पदच्युत खाये खार,
रहे खिसियाये ऐंठे।
देगा कौन उतार,
उन्हें जो भूतल बैठे।

संजय नारायण

5 Likes · 1 Comment · 623 Views
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