दर्द पाओगे मुहब्बत का भरोसा न करो
ये बदल जायगी आदत का भरोसा न करो
बैठ कर खाली इबादत का भरोसा न करो
अब छिपे रहते नकाबों में ही असली चेहरे
बस दगा खाओगे सूरत का भरोसा न करो
तुम जमीं से कभी उठने न कदम ये देना
पल की मेहमान है शोहरत का भरोसा न करो
रंक हो राजा या राजा हो भिखारी पल में
आनी जानी है ये दौलत का भरोसा न करो
करते नाराज़ इसे अपने ही कर्मों से हम
और कहते हैं कि कुदरत का भरोसा न करो
‘अर्चना’ दिल से नहीं होती मुहब्बत अब तो
दर्द पाओगे मुहब्बत का भरोसा न करो
डॉ अर्चना गुप्ता