तू बदल जा मौसम की तरह
कल सुबह का आसमान –
साफ और बहुत साफ था,
ना जाने क्यूँ –
आज उसका मिजाज़ बहुत नासाज़ है,
ए-मौसम तेरी गुफ़्तगू ,
मैं आज़ भी जान नहीं पाया,
अंदाज़ा तो बार बार लगाया,
लेकिन हर बार और बार-
बार तूने छला,
मैं यकीन करते गया और तू
छलते गया,
तेरी ही तरह ए ,
वो भी बदलते रहता है
समझ नहीं पाता की तू –
उसे सिखाता,
या वो तुझे,
लेकिन तुम दोनों का अंदाज,
मुझे समझ नहीं आता।