तू नहीं हमटूटेंगे
काश ! हम भी चुन सकते,
बना सकते जीवन साथी,
अपनी निजता के साथ,
जब हम बहुत छोटे थे,
तब हमने दुनियादारी जानी-
ना-थी,
फिर भी ,मेरे समाज,
मेरे परिवार और परिवेश ने,
मुझे उन्मुक्त भाव से-
अपना साथी,
चुनने की आजादी दी,
पर आज जब, मै दुनिया
और दुनियादारी
-समझने लगा हू तो, मुझे-
मेरा समाज रोकता है,
दुहाई देता है, मुझे कुल मर्यादा;
सामाजिक रीति -नीति की,
और उसे बनाये रखने के लिए
हमें बार-बार टूटते रहना है,