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30 Nov 2017 · 1 min read

ढूंढ़ी है हमने अपनी मुहब्बत कहाँ कहाँ

ढूंढ़ी है हमने अपनी मुहब्बत कहाँ कहाँ
मन मे बसी हमारे वो सूरत कहाँ कहाँ

पहुँची हैं आज देखिये कीमत कहाँ कहाँ
कर आम आदमी ले किफायत कहाँ कहाँ

नाराज़ यूँ रहो नहीं हम जी न पाएंगे
हमको बता दो हमसे शिकायत कहाँ कहाँ

सँभले कदम कहीं तो फिसल भी यहाँ गये
ले जाती है हमारी ही किस्मत कहाँ कहाँ

बेघर क्यों कर दिया उसी औलाद ने उसे
मांगी थी जिसको पाने की मन्नत कहाँ कहाँ

प्यासा है भाई अपने ही भाई के खून का
ले जाती हमको देखो ये नफरत कहाँ कहाँ

रहते हमारे दिल में ही भगवान ‘अर्चना’
पर जाते करने हम तो इबादत कहाँ कहाँ

डॉ अर्चना गुप्ता
30-11-2017

1 Comment · 458 Views
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