ढूंढ़ी है हमने अपनी मुहब्बत कहाँ कहाँ
ढूंढ़ी है हमने अपनी मुहब्बत कहाँ कहाँ
मन मे बसी हमारे वो सूरत कहाँ कहाँ
पहुँची हैं आज देखिये कीमत कहाँ कहाँ
कर आम आदमी ले किफायत कहाँ कहाँ
नाराज़ यूँ रहो नहीं हम जी न पाएंगे
हमको बता दो हमसे शिकायत कहाँ कहाँ
सँभले कदम कहीं तो फिसल भी यहाँ गये
ले जाती है हमारी ही किस्मत कहाँ कहाँ
बेघर क्यों कर दिया उसी औलाद ने उसे
मांगी थी जिसको पाने की मन्नत कहाँ कहाँ
प्यासा है भाई अपने ही भाई के खून का
ले जाती हमको देखो ये नफरत कहाँ कहाँ
रहते हमारे दिल में ही भगवान ‘अर्चना’
पर जाते करने हम तो इबादत कहाँ कहाँ
डॉ अर्चना गुप्ता
30-11-2017