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6 Dec 2018 · 1 min read

जुगनू

मन्ज़िल की तलाश में खुद राहों को जाना पड़ा,
ख्वाबों की तलाश में जैसे आँखों को जाना पड़ा,

चाँद सूरज जब रौशनी कर न सके मेरे दिल में,
छोड़ कर घर अपना फिर जुगनुओं को आना पड़ा,

बहरी होने लगी जब हवाओं की बहर कहानी,
खामोश रहकर फिर एहसासों को सुनाना पड़ा,

रात दिन ढूढ़ता रहा मैं जिस लम्हें की आहट को,
एक साँझ अपने ही हाथों वो लम्हा छिपाना पड़ा,

दोस्ती इतनी गहरी रही अपने खुद के पायदान से,
के रिश्तों की म्यान से “राही” को बाहर लाना पड़ा।।

राही अंजाना
मीजान – संतुलन/तराजू

Language: Hindi
267 Views
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