जीवन के बहते सागर में
जीवन के बहते सागर में ,
करुणा लहर बहती है ।
ये कल-कल की ध्वनि देखों ,
कुछ विस्मृत बातें कहती है ।।
फुलों की फुलवारी में ,
एक भरम्र गीत सुनाए ।
उमड़-उमड़ कर ये मनवा ,
साजन से प्रीत लगाए ।।
आकाश की मोहक क्रीड़ा ,
कम करें हृदय की जलन को ।
धरा स्वागत करने आई ,
प्रियतम तेरे मेरे मिलन को ।।
कोहतुल से गहन भवर में ,
हिमकर से किरणें आती हैं ।
नव कुसुम कुंज सी छाया ,
मन्त्र मुग्ध कर जाती हैं ।।
निर्झर झरनों की मधुर छवि ,
अकिंचन ही इठलाए ।
मुस्काए यौवन रसीला ,
हृदय मृदल हिलोरें खाए ।।
बिलखाती प्रतिध्वनि मेरी ,
इस व्यथित व्योम आँगन में ।
क्या व्यर्थ स्वास् भरती हैं ?
मुझ सुप्त पड़े मानव में ।।
प्रतिभा से भरपूर नयन ये ,
जब भी स्वप्न सजाए ।
झर झर मेघा बरसे ,
मन वीणा तान बजाए ।।
पावन प्रणय सी पगली सुमन ,
जब उज्जवल रस टपकाती ।
मौन मुख पर घूँघट डाले ,
फिर मन ही मन मुस्काती ।।
चलो चले स्वर्ग रूपी नैय्या में ,
प्रखर सत्य से मिल आएँ ।
जीवन की गोधूलि में ,
न व्यर्थ समय गवाएँ ।।
कहत ‘पूनम’ है जीत इसी में,
ना मिथ्या प्रीत लगाना ।
लग जाए ये बात किसी को,
बन भरम्र प्रीत राग सुनना ।।
— पूनम पांचाल —