जिसको तन्हाई में ही गाता हूँ
ग़ज़ल
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रब के मैं बारगाह में जाता हूँ
जब कभी तन्हा खुद को पाता हूँ
हाथ उठते हैं जब दुआओं में
समने मैं खुदा को पाता हूँ
जल्द बीमार को शिफ़ा दे दे
तेरे सदके में सर झुकाता हूँ
ख़्याल रख कर मैं नन्हे बच्चे का
दस्ते-फ़रियाद मैं उठाता हूँ
ठीक बीमार को तू कर कान्हा
फूल अश्क़ों के मैं चढ़ाता हूँ
सुन ले फ़रियाद हम ग़रीबों की
अर्ज़ मैं बस यही लगाता हूँ
जान तुम तो हो मेरा वो नग़्मा
जिसको तन्हाई में ही गाता हूँ
देख कर दुनिया को मसर्ररत में
खुद को भी मैं खुशी में पाता हूँ
लौट कर आ जा ऐ मेरे “प्रीतम”
देख रो कर तुझे बुलाता हूँ
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती उ०प्र०)
09/09/2017