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11 Dec 2016 · 1 min read

ज़मीं पर उतरने की फ़िराक़ देखे है

ज़मीं पर उतरने की फ़िराक़ देखे है
चाँद आसमाँ से ये ख्वाब देखे है

ज़रा ज़रा से फेंककर पत्थर इक नादां
समंदर में तूफ़ां के उठान देखे है

ईश्क़ के क़ायदों से होने को वाक़िफ़
दिल की कोई हसीन क़िताब देखे है

हां उम्र-ए-रवाँ के तज़रबों से ज़ालिम
संजीदा कहानियों में मज़ाक़ देखे है

बहुत दिनो से सवालिया नज़र है उसकी
रिश्ता तोड़ने का सुराग देखे है

समझे है लफ़्ज़ों की गहराई इसलिए
पढ़ने से पहले उनवान देखे है

ख़ूबसूरत सी दिलरुबा ग़ज़ल देखकर
वो ‘सरु’ की क़लम के अंदाज़ देखे है

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