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8 Dec 2018 · 1 min read

छुप छुप के

वो हमे अपनो मे कहता है
मगर छुप छुप के मिलता है

हर पल डर है उसे किसका
पूछे जो फिर बहाने बनाता है

वो हमारे पास रहना भी चाहे
मजबूरी ये जाना पड़ता है

ख्वाहिशे भूला दी कब की
जरूरतो मे दौड़ता रहता है

जिदंगी टूक टूक भी जाती है
एक लम्बी सांस से समझाता है

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