” ————————————— चढ़ा ना सच परवान ” !!
म्यानों से तलवार न बाहर , यहां शब्दों के बाण !
यह चुनाव की रणभेरी है , सुनो धरो जी ध्यान !!
बिखरा बिखरा सा विपक्ष है , सबकी अपनी चाहत !
मुद्दों से भटके जनता बस , जुटा रहे मन प्राण !!
नोटबन्दी के बाद यहां अब , केशबन्दी है भारी !
शेष प्रलोभन वादों का है , सब लेते हैं संज्ञान !!
जातिवाद ने पैर पसारे , हुआ समाज विभाजित !
टुकड़े टुकड़े देश हो गया , नेता गुणों की खान !!
सत्ता गिना रही हासिल क्या , सूरत खिली खिली हैं !
अगर कीच में पैर फंसे तो , ठहर सके ना गुमान !!
बेकारी तो बरकरार है , व्यौपारी घबराये !
आरक्षण बन गया कसौटी , जनता खींचे ध्यान !!
बिखर गया आतंक लगे है , बदली सी घाटी है !
स्वाभिमानी सेना का ये , सफल जानो अभियान !!
है विकास का शोरशराबा, कैशलेस होते हम !
भ्र्ष्टाचार ख़तम हुआ ना , चढ़ा ना सच परवान !!
बृज व्यास