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16 Jun 2016 · 1 min read

चेहरे की उदासी को , धोने नहीं दिया इक ग़ज़ल ने

चेहरे की उदासी को , धोने नहीं दिया इक ग़ज़ल ने
मुझ को देर रात तक,सोने नहीं दिया इक ग़ज़ल ने

इक दर्द सीने में उठ – उठ के , सिसकियाँ भरता रहा
मुझ को बस जी भर के,रोने नहीं दिया इक ग़ज़ल ने

कहाँ जाये अब ये गमें – दिल ले कर लोग ढूँढ लेते है
शहर की भीड़ में मुझे,खोने नहीं दिया इक ग़ज़ल ने

सिमट के रह गई खामोशियाँ सब इक आहे – दर्द में,
पलकों का दामन , भिगोने नहीं दिया इक ग़ज़ल ने

सहरा की तरह बंजर – बंजर है , भीतर से प्यासे है
कागज़ पे अश्क़ो को बोने नहीं दिया इक ग़ज़ल ने

जी में जी आता और साँस में साँस भी आती रोते तो
आँसू रडकते रहे मगर रोने नहीं दिया इक ग़ज़ल ने

पकड़ लिए हाथ मेरे रोते हुये कल कागज की रूह ने
मुझे क़लम को लहू में,डुबोने नहीं दिया इक ग़ज़ल ने

कर लेता ख़ुदकुशी “पुरव” कभी ना कभी तंग आके
बस तुझसे खफा कभी,होने नहीं दिया इक ग़ज़ल ने

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