चिकित्सक- देव तुल्य
हम चिकित्सक है,भगवान कहलाते है।
देव बनकर जी ले,ये चुनोति सह जाते है।।
राज की आज्ञा है, ज़माने के रंजो गम है।
हम अपने सीने में, यूँ ही छुपा जाते है।।
पर पीड़ा की सोचते, निज पीड़ा को भूलते।
तन मन अर्पण करके, जान बचा पाते है।।
कर्म भी उत्कर्ष है, जीवन में संघर्ष है।
स्व आंनद को त्यागकर,फर्ज में तत्पर है।।
अब संतापो की झड़ी है,समस्या आ खड़ी है।
बिगड़ते रोज रिश्तो में,असुरक्षा की कड़ी है।।
सहस्त्रो जनसख्या है,सुरसा सी अपेक्षा है।
चुनोती पर उतरना, किंचित यंहा शंका है।।
क्या सुधरेगा तंत्र,बढ़ पायेगा अनुपात।
मिल पायेगी उच्च शिक्षा,रुकेगा वज्रपात।।
तकनिकी के युग में,खामियां अपार है।
दोष जिस पर जड़ रहे,वो छूटता भगवान है।।
(डॉ शिव’लहरी’)