चलाते पीठ पर उनको तो खंजर हमने देखा है
बदलता वक़्त रहता है ये तेवर हमने देखे हैं।
नदी नालों न उफनाओ समंदर हमने देखे हैं।।
हुए कितने ज़माने में चले जो जीतने दुनिया ।
गये हैं हाथ खाली वो सिकंदर हमने देखे हैं।।
अगर हम सामने हो तो करेंगे बात वो मीठी ।
चलाते पीठ पर उनको तो ख़ंजर हमने देखे हैं।।
मिली है जिंदगी तुझको इसे भरपूर जी ले तूँ।
बिगड़ता बनता रहता है मुकद्दर हमने देखे हैं।।
लिया है ‘कल्प’ ने संकल्प ये धरती बचाने का।
न कर खिलवाड़ कुदरत से बवंडर हमने देखे हैं।।
✍?अरविंद राजपूत ‘कल्प’