" प्यार के रंग" (मुक्तक छंद काव्य)
*छाई है छवि राम की, दुनिया में चहुॅं ओर (कुंडलिया)*
मैं वो चीज़ हूं जो इश्क़ में मर जाऊंगी।
सुरभित पवन फिज़ा को मादक बना रही है।
तुम ही सौलह श्रृंगार मेरे हो.....
"आज मग़रिब से फिर उगा सूरज।
जो माता पिता के आंखों में आसूं लाए,
रमेशराज की पिता विषयक मुक्तछंद कविताएँ
Kash hum marj ki dava ban sakte,
तुझसे कुछ नहीं चाहिये ए जिन्दगीं
देकर घाव मरहम लगाना जरूरी है क्या
मुझको मालूम है तुमको क्यों है मुझसे मोहब्बत
भारत सनातन का देश है।
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
*......हसीन लम्हे....* .....