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4 Dec 2018 · 1 min read

ग़ज़ल

मेरा तो कोई अभी इम्तिहान बाकी है
जो चश्मे नाज़ में ताजा उफान बाकी है

पनाह दर पे तुम्हारे नहीं तो ग़म ही नहीं
अभी तो सारा ज़मीं आशमान बाकी है

तुम्हारे ग़म की ये परछाइयाँ सताती हैं
हरेक ज़ख़्म का दिल पे निशान बाकी है

परों को काट के सोचा उडे़गा कैसे मगर
अभी तो हौसलों बाकी उडान बाकी है

कभी बिख़रने नहीं देगा तुमको ऐ फूलों
मेरे चमन का अभी बाग़बान बाकी है

कहानी किस्से तो तुमने बहुत सुने लेकिन
ये मेरे दिल की अभी दास्तान बाकी है

महल गिराया है “प्रीतम” के ख़्वाबों का लेकिन
तेरे क़रम का शिक़स्ता मकान बाकी है

प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)

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