कविता : ?? मिलजुल रहें हमेशा??
मिजजुल खिलें रंग-बिरंगे फूलों की तरह।
न पैरों में चुभें किसी के काँटों की तरह।।
इस भू पर सबका बराबर हिस्सा हो जाए।
खेलें फिर भू-सागर पर लहरों की तरह।।
तेरा-मेरा का राग तजें ऊँच-नीच भावना।
प्यार से गले मिलें त्रिवेणी मंज़र की तरह।।
एक भूखा सोये,एक खाए सौलह व्यंजन।
शोभा नहीं देता इंसान ये अभद्र की तरह।।
प्रकृति निस्वार्थ भाव से ख़ुद को बाँटती है।
कुछ सीख लीजिए इससे भी मंत्र की तरह।।
गीता पढ़ते हो क़समें खाते हो हिन्दू बनके।
क्या लाए,क्या ले जाओगे यूँ यंत्र की तरह।।
फ़ासले कम करो इंसानियत सीख जाओ भी।
समदृष्टि से सबको देखो तुम आदर की तरह।।
बदला छोड़ खुद ही बदल जाओ चैन मिलेगा।
भर जाएगा ये दिल प्यार से सागर की तरह।।
संतोष मन में कर धैर्य हृदय में धारण करले।
क़ोशिश न कर बनने की सिकन्दर की तरह।।
सबका मालिक एक है उसके हाथ जीवन डोर।
हमतुम नाचते उसके इशारे पर बंदर की तरह।।
“प्रीतम”प्रीत इंसान से नहीं उसके विचारों से रख।
भर जाएगा जीवन ख़ुशियों से सावन की तरह।।
………..राधेयश्याम बंगालिया”प्रीतम”
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