कविता : ??फूल के प्यार में??
फूलों की हवा से खाली दिल में बात आ गई।
तुझे देख शुष्क होठों पर इश्के-बरसात आ गई।।
तेरा चेहरा फूल के पहनावे की कंठी का फूल है।
हवाओं में घुलकर चेहरे की शानो-सौगात आ गई।।
फूल के प्यार के छल में छला न जाऊँ कभी मैं।
बिखर के शबनम-सी दिल में एहतियात आ गई।।
रुसवा न कर दे मुझे मासूम चेहरे का भोलापन।
फूलों की सुगंधी-सी दिल में मेरे लम्हात आ गई।।
तेरी आँखों के आईने ने तसल्ली तो दी है बहुत।
पर ख्यालों में दगा-ए-सिला की क्यों बात आ गई?
जफा-ए-सिला न देना चाहे जान ले लेना हँसकर।
शोहरत समझी है प्यार की जैसे कायनात आ
गई।।
काविशे-गमे-हिजरां बहुत मिलते हैं”प्रीतम”जमाने में।
यूँ लगता है देख उन्हे उजाला डसने रात आ गई।।
………..राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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