खंजर की चुभन से ही मैं पहचान गया था
उस पर तो कभी दिल का कोई ज़ोर नहीं था
हमसा भी ज़माने में कोई और नहीं था
जिस वक़्त वो रुख्सद हुआ बारात की मानिंद
एक टीस सी उठी थी कोई शोर नहीं था
वीरान सी दुनिया में हम किस से बहलते
जंगल था उदासी थी कोई मोर नहीं था
दिल टूट गया था तो जुडाते कहीं जाकर
इस काम का दुनिया में कोई तोर नही था
खंजर की चुभन से ही में पहचान गया था
वो तू था मेरे दोस्त कोई और नहीं था
– नासिर राव